Wednesday, 22 September 2010

हम तो मिट्‌टी के खिलौने थे गरीबों में रहे


कोई पूजा में रहे कोई अजानों में रहे
हर कोई अपने इबादत के ठिकानों में रहे

अब फिजाओं में न दहशत हो, न चीखें, न लहू
अम्न का जलता दिया सबके मकानों में रहे

ऐ मेरे मुल्क मेरा ईमां बचाये रखना
कोई अफवाह की आवाज न कानों में रहे

मेरे अशआर मेरे मुल्क की पहचान बनें
कोई रहमान मेरे कौमी तरानें में रहे

बाज के पंजों न ही जाल, बहेलियों से डरे
ये परिन्दे तो हमेशा ही उड़ानों में रहे

हम तो मिट्‌टी के खिलौने थे गरीबों में रहे
चाभियों वाले बहुत ऊंचे घरानों में रहे

वो तो इक शेर था जंगल से खुले में आया
ये शिकारी तो हमेशा ही मचानों में रहे।

चित्र photos.merinews.com से साभार

10 comments:

  1. हम तो मिट्‌टी के खिलौने थे गरीबों में रहे
    चाभियों वाले बहुत ऊंचे घरानों में रहे

    बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है....वाह जनाब क्या कहने

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  2. हम तो मिट्‌टी के खिलौने थे गरीबों में रहे
    चाभियों वाले बहुत ऊंचे घरानों में रहे

    अच्छी पंक्तिया ........

    पढ़े और बताये कि कैसा लगा :-
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html

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  3. हम तो मिट्‌टी के खिलौने थे गरीबों में रहे
    चाभियों वाले बहुत ऊंचे घरानों में रहे

    क्या बात है?

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  4. अब फिजाओं में न दहशत हो, न चीखें, न लहू
    अम्न का जलता दिया सबके मकानों में रहे

    आमीन

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  5. बहुत बढ़िया रचना सर जी। बधाई हो।

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  6. बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!

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  7. हम तो मिट्‌टी के खिलौने थे गरीबों में रहे
    चाभियों वाले बहुत ऊंचे घरानों में रहे
    kaya baat kahi hai aapne...bahut khubsurat gajal..bahut-bahut badhai..

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  8. Sir bahut sundar ghazal badhai RANJANA SINGH AND SUDHA YADAV

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