Wednesday, 2 June 2010

एक आलेख -हिन्दी नवगीतों में बादल


हिंदी नवगीतों मे बादल -एक आलेख 
ये सूखे बादल
लगते बेहाल से।
मानसून कब लौटेगा
बंगाल से? -जयकृष्ण राय तुषार

आदिम युग से विश्व साहित्य तथा साहित्य की विविध विधाओं में बादलों का विभिन्न रूपों में वर्णन मिलता है। संस्कृत के महान कवि कालिदास का 'मेघदूतम्‌' एक सर्वोत्तम काव्य कृति है। अलाव की तरह तपती हुई धरती पर जब बारिश की अमृतमयी बूंदें छन-छन गिरती हैं तो प्यासी पथराई आंखों में हरियाली के स्वप्न सजने लगते हैं। पेड़ों की शीतल छांह से लौटती हवाओं की आवारगी बढ  जाती है। दूर तक हंसते खिलखिलाते फूलों की मनोहारी छटा देखकर मन रूमानियत से भर उठता है। किशोरियां खुद को आदमकद दर्पण में निहारने लगती हैं और मेंहदी रचे हाथों की चित्रकारी देखकर आसमान में इठलाते इन्द्रधनुष की चमक फीकी पड़  जाती है। चैत-वैशाख में कवियों की लेखनी की सूखी स्याही सदावाहिनी नदियों की तरह तटबन्ध तोड़ने  लगती है। ऐसे में कविता में प्राण फूंकने वाले कवि कैलाश गौतम ननद से भाभी की शरारत बादल के माध्यम से कुछ इस प्रकार व्यक्त करते हैं-
बादल टूटे ताल पर
आटा सनी हथेली जैसे
भाभी पोंछ गयी
शोख ननद के गाल पर (जोड़ा ताल से)

हिन्दी के सुप्रसिद्ध गीत कवि माहेश्वर तिवारी भी बादलों को अपनी कविता का विषय बनाते हैं- 
काले-काले पंख
शिलाओं पर फैलाये 
बादल आये।

आजकल के वरिष्ठ सम्पादक और हिन्दी के खयातिलब्ध गीत कवि श्री योगेन्द्र दत्त शर्मा की सोच इन बादलों के बारे में कुछ इस प्रकार है-
सूर्य बिम्ब
धुंध में धुंधलकों में
खो रहा
मन घिरते मेघों का
शामों को हो रहा (योगेन्द्र दत्त शर्मा)



हिन्दी के सुपरिचित नवगीतकार डॉ० बुद्धिनाथ मिश्र भी बड़े रूमानी अंदाज में कह उठते हैं -
प्यास हरे 
कोई घन बरसे
तुम बरसो या सावन बरसे

वर्षा में लय, प्रलय, संयोग, वियोग, प्रेम, विछोह सब कुछ समाहित होता है। जिस क्षण जैसा कवि महसूस करता है वैसा ही भाव वह अपने गीतों के माध्यम से प्रस्तुत करता है। प्रेमशंकर रघुवंशी की सोच कुछ इस तरह है-
पहले मेघ आषाढ  के
बरसेंगे किसके आंगन में
सारी उमस बुहार के

इसी प्रकार गीतकार उमाकांत मालवीय जी जो कुछ दिन तक 'बादल' उपनाम से कतिताएं भी लिखते थे, बड़े ही शास्त्रीय अंदाज में बादल का वर्णन अपने नवगीतों में करते हैं-
बादल जो
शाम से घिरा 
पानी कल रात भर गिरा
पिघल गये मान के उलाहने
घेरा जब कमलतंतु बांह ने
नीले नभ के नयनों में
घन शावक स्वप्न बन तिरा (उमाकान्त मालवीय)

विनोद श्रीवास्तव भी बादलों को कुछ इस तरह से महसूस करते हैं और कह उठते हैं-
बादलों ने कह दिया
आओ चलें घर छोड कर
चाहकर भी हम
निकल पाये न पिंजरे तोड कर

प्रो० विद्यानंदन राजीव बादल में नये अर्थ तलाशते हुए नजर आते हैं और कह उठते हैं-
कितने नये अर्थ देता है
प्यासी धरती को
बादल का आना



बादलों का मानवीकरण गीतकवि विभिन्न रूपों में करते रहे हैं। गीत कविता की आदिम जमीन है। गीत शाश्वत होता है। प्रकृति की प्रत्येक लय में गीत समाहित है और गीतों में प्राकृतिक सुषमा। पारंपरिक गीतों/लोकगीतों में भी बादलों का जीवंत और भरपूर वर्णन मिलता है। हिन्दी के महत्वपूर्ण गीत कवि यश मालवीय को सावन की पहली बरखा आशीष देती हुई नजर आती है-
अभिवादन बादल-बादल
खबर लिए वन उपवन की
कितने आशीर्वाद लिए
पहली बरखा सावन की

मधुकर अष्ठाना तो बादलों के माध्यम से भारतीय राजनीति का विद्रूप चेहरा उजागर करते हैं-
सीख लिया है
मेघों ने भी
लटके झटके बड़े बड़ो के
सींच रहे हैं फुनगी केवल
सगे नहीं हो सके
जड़ो के
बांट दिया है इन्द्रधनुष को
कुछ अगड़ो में
कुछ पिछड़ो में

भोपाल में बैठे गीतकवि मयंक श्रीवास्तव झीलों और तालों के बीच कुछ अलग भाव-भूमि की रचना करते नजर आते हैं-
मेरे गांव घिरे ये बादल
जाने कहां कहां बरसेंगे
अल्हड पन लेकर पछुआ का
घिर आयी निर्दयी हवाएं
दूर-दूर तक फैल गयी है
घाटी की सुरमई जटाएं
ऐसे मदमाते मौसम में
जाने कौन कौन तरसेंगे

डॉ० महाश्वेता चतुर्वेदी बादलों के बीच खुद को यक्षिणी सा महसूस करती हैं।
बादलों मुझ यक्षिणी की बात कहना
नीरगंगा जल बनाकर
मैं तुम्हारे पद पखारूं
चेतना की भव्य प्रतिमा
जानकर तुमको निहारूं



हिन्दी नवगीत के शिखर पुरुष ठाकुर प्रसाद सिंह बादल में पिता की अनुभूति करते हैं-
मां हमारी दूध का तरु
बाप बादल
और बहन हर बोल पर
बजती हुई मादल
उतर आ हंसी
कि मैं वंशी (ठाकुर प्रसाद सिंह)

वरिष्ठ हिन्दी गीत कवि सत्यनारायण बादल को बावरा कहने में तनिक भी संकोच नही करते हैं और कह उठते हैं-
अजब ये बावरे बादल
सलोने सांवरे बादल
कहां से आ गये तिरते
गरजते घुमड़ते घिरते
किसी की ये खुली अलकें
किसी के आंख का काजल (सत्यनारायण)

दिनेश प्रभात बच्चों के स्कूल जाने का बिम्ब बादलों के माध्यम से बड़े  अनोखे अंदाज में प्रस्तुत करते हैं-
काम काज पर लौटे बादल
छुट्‌टी खत्म हुई
नन्ही नन्ही सी बूंदों ने
बस्ते टांग लिए
फिर पापा से गले लिपटकर
पैसे मांग लिए (दिनेश प्रभात)

बृजनाथ श्रीवास्तव की चिंता कुछ इस प्रकार की है। 
मेघ फटे मायानगरी में
जिए गांव ने सूखे
हम कहां-कहां चूके

जहीर कुरेशी घटाओं की तुलना नायिका के जूडे   से करते हैं-
फिर खुले आकाश में जूड़े घटाओं के
फिर हवाओं के दुपट्‌टे हो गये भीने


हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि गुलाब जो अपने आंचलिक गीतों के लिए भी जाने और पहचाने जाते है बादलों की तुलना बंजारों की टोली से करते हैं -
शिखर -शिखर पर 
डोले बादल 


इस पल जमे 
कि उस पल उखड़े 
सुबह बसे 
दुपहर को उजड़े 
बंजारों के टोले बादल 



हिन्दी के कठिन काव्य के कवि चन्द्रसेन विराट भी यहां थोड़ा सरल और सहज दिखते हैं- 
निमंत्रण यह घटाओं का नहीं है आज बेमानी
चलो छत पर बुलाता है प्रथम बरसात का पानी

वरिष्ठ गीत कवि देवेन्द्र शर्मा इन्द्र की सोच कुछ अलग है-
बादल तुम संस्कृत में गरज रहे
क्या न कभी प्राकृत में बरसोगे

इसी प्रकार मुकुट बिहारी सरोज कहते हैं-
आंधी ज्यादा पानी कम है
ये कोई बादल में बादल हैं
यों देखो तो कोई कमी नहीं
लेकिन आचरणों में नमी नहीं

बादल संस्कृत कवियों के परमप्रिय विषय रहे हैं तो छायावादी कवियों के भी प्राणाधार रहे हैं। महाप्राण निराला, पंत, प्रसाद, महादेवी, दिनकर सभी कवियों ने बादल को कविता का विषय बनाया। जब तक प्रकृति रहेगी धरती पर मानव सभ्यता रहेगी कवियों में चातक प्यास रहेगी तब तक बादल कविता में आलम्बन और उद्‌दीपन बनते रहेंगे।

16 comments:

  1. क्रोध पर नियंत्रण स्वभाविक व्यवहार से ही संभव है जो साधना से कम नहीं है।

    आइये क्रोध को शांत करने का उपाय अपनायें !

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  2. बेहद सुन्दर ....

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  3. बहुत ही अनूठी प्रस्तुति लगी.
    बहुत ही अच्छी .

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  4. BAHUT ACHCHI PRATUTI TUSHAR, TUMARE BADLON MEN KUCHH DER KE LIYE MAIN KHO GAYA. MUJHE APNI KAHIN LIKHI PANKTI YAD AAYEE---

    NAHIN KUCHH MAT
    MANGANA IN MEGHON SE
    YE BAHUT GARAJ RAHE HAI
    TUMHARA MAJAK UDAYENGE YE
    NAHIN BAN SAKTE YE
    MEGH DOOT AKAAL KE

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  5. बादलों पर सुन्दर प्रस्तुति..बेहद समयानुकूल व सार्थक रचना. अब तो बादल आ ही जायेंगे और स्वास्थ्य कैसा है...

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  6. बादल टूटे ताल पर
    आटा सनी हथेली जैसे
    भाभी पोंछ गयी
    शोख ननद के गाल पर

    Is sukhe mausam mai aapka yai badlo ka lekh hame bhigo gaya, esi rachnao ki praticha rahegi.

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  7. बादल टूटे ताल पर
    आटा सनी हथेली जैसे
    भाभी पोंछ गयी
    शोख ननद के गाल पर

    बादलों की नवगीतों मे उपस्थिति पर अच्छा आलेख

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  8. बादलों की अद्भुत दुनिया. इस पर तो कवियों-रचनाकारों ने खूब लिखा है...हिंदी नवगीत में बादलों पर शानदार प्रस्तुति के लिए साधुवाद !!

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  9. बढिया प्रस्तुति..

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  10. badal par aapka sanklan parha.bahoot hi sarahneeya hai.thank u very much.

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  11. badal par aapka sanklan parha.bahoot hi sarahneeya hai.thank u very much.

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  12. badal par aapka sanklan parha.bahoot hi sarahneeya hai.thank u very much.

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  13. YE CHHOTI-CHHOTI BADLIYAAN.....
    BEHAD KHOOBSOORAT!
    KAMAAL HAI MERE CHITTHE PAR BHI BAADAL CHHAYE HAIN!!!
    JANIYE,
    KYUN HOTA BAADAL BANJARA.....?
    ASHISH :)

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