एक गीत -माँ तुम गंगाजल होती हो
मेरी ही यादों में खोयी
अक्सर तुम पागल होती हो
मां तुम गंगा जल होती हो!
मां तुम गंगा जल होती हो!
जीवन भर दुःख के पहाड़ पर
तुम पीती आंसू के सागर
फिर भी महकाती फूलों सा
मन का सूना सा संवत्सर
जब-जब हम लय गति से भटकें
तब-तब तुम मादल होती हो।
व्रत, उत्सव, मेले की गणना
कभी न तुम भूला करती हो
सम्बन्धों की डोर पकड कर
आजीवन झूला करती हो
तुम कार्तिक की धुली चांदनी से
ज्यादा निर्मल होती हो।
पल-पल जगती सी आंखों में
मेरी खातिर स्वप्न सजाती
अपनी उमर हमें देने को
मंदिर में घंटियां बजाती
जब-जब ये आंखें धुंधलाती
तब-तब तुम काजल होती हो।
हम तो नहीं भगीरथ जैसे
कैसे सिर से कर्ज उतारें
तुम तो खुद ही गंगाजल हो
तुमको हम किस जल से तारें।
तुझ पर फूल चढ़ायें कैसे
तुम तो स्वयं कमल होती हो।
मेरी ही यादों में खोयी
अक्सर तुम पागल होती हो
मां तुम गंगा जल होती हो!
मां तुम गंगा जल होती हो!
जीवन भर दुःख के पहाड़ पर
तुम पीती आंसू के सागर
फिर भी महकाती फूलों सा
मन का सूना सा संवत्सर
जब-जब हम लय गति से भटकें
तब-तब तुम मादल होती हो।
व्रत, उत्सव, मेले की गणना
कभी न तुम भूला करती हो
सम्बन्धों की डोर पकड कर
आजीवन झूला करती हो
तुम कार्तिक की धुली चांदनी से
ज्यादा निर्मल होती हो।
पल-पल जगती सी आंखों में
मेरी खातिर स्वप्न सजाती
अपनी उमर हमें देने को
मंदिर में घंटियां बजाती
जब-जब ये आंखें धुंधलाती
तब-तब तुम काजल होती हो।
हम तो नहीं भगीरथ जैसे
कैसे सिर से कर्ज उतारें
तुम तो खुद ही गंगाजल हो
तुमको हम किस जल से तारें।
तुझ पर फूल चढ़ायें कैसे
तुम तो स्वयं कमल होती हो।
अच्छा लिखा है आपने.
ReplyDeleteक्या हिंदी ब्लौगिंग के लिए कोई नीति बनानी चाहिए? देखिए
संसार की समस्त माताओं को नमन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteमाँ तुझे सलाम
bahut hi acchi kavita
ReplyDeleteMaa ki samvedana se judi adbhut kavita.
ReplyDeleteMaa ki samvedana se judi adbhut kavita.dr. Mamata rai
ReplyDeleteमाँ को समर्पित बेहतरीन रचना..बधाई !!
ReplyDelete************************
'शब्द सृजन की ओर' पर आज '10 मई 1857 की याद में' ! आप भी शामिल हों.
maa per ek behtareen kavita tusharji badhai.dhirendr pratap
ReplyDeletevery nice.deepak chaubey
ReplyDeletebahut achchi kavita
ReplyDeleteHappy mother's daY. very nice Thanks
ReplyDeleteTushar, blog par aaya, ghuma, sarsari najar dali. Bahut achchha laga. Tum achchhe geet likhte ho. man prasann hua. Kialash se milkar purani yaden taja ho gayee. unki dhamakedar hansi yad aa gayee. ve ek behtarin kavi to the hi, ek bemisal aadami bhi the. aajkal jo aadami nahin hain, ve bhi kavitayen kar rahe hain, isliye Kailash ki bahut yad aati hai. tumhen bahut sari shubhkamanayen, aise hi uper uthte jao.
ReplyDeleteतुषार जी यह कैता बहुत मार्मिक है।
ReplyDeleteधनंजय
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..बधाई !!
ReplyDeleteAapke blog par vichran kiya, hriday prafullit ho utha.
ReplyDeleteMaan tum gangajal hoti ho.....
Maaan ke charno samarpit adbhut kavita hai....
Yash malviya aaur kavi kailash gautam ji ke baare me aapne durlabh baaten likhi hai, jan kar man khush ho utha.
Aapka prayas sarahniya hi nahi hai, balki aap anginat baaar badhai ke patra hai..
HARDIK BADHAI......
Maa apne bachhon ke liye jab darti hai to khargosh ka dil rakhti hai..usee bachhe ke khatir sherni ban duniyase lad padti hai..
ReplyDeleteमाँ के बारे में आपने कित्ती प्यारी कविता लिखी...बधाई.
ReplyDelete_________________
पाखी की दुनिया में- 'जब अख़बार में हुई पाखी की चर्चा'
Aapke blog par vichran kiya, hriday prafullit ho utha.
ReplyDeleteMaan tum gangajal hoti ho.....
Maaan ke charno samarpit adbhut kavita hai....
Yash malviya aaur kavi kailash gautam ji ke baare me aapne durlabh baaten likhi hai, jan kar man khush ho utha.
Aapka prayas sarahniya hi nahi hai, balki aap anginat baaar badhai ke patra hai..
HARDIK BADHAI......meher wan
wah bahut khub....
ReplyDeleteBahut acchha likha hai aapne...
ReplyDeleteAaapki aagya se mere bhi shraddha suman....
मेरा जीवन मेरी साँसे,
ये तेरा एक उपकार है माँ!
तेरे अरमानों की पलकों में,
मेरा हर सपना साकार है माँ!
तेरी छाया मेरा सरमाया,
तेरे बिन ये जग अस्वीकार है माँ!
मैं छू लूं बुलंदी को चाहे,
तू ही तो मेरा आधार है माँ!
तेरा बिम्ब है मेरी सीरत में,
तूने ही दिए विचार हैं माँ!
तू ही है भगवान मेरा,
तुझसे ही ये संसार है माँ!
सूरज को दिखाता दीपक हूँ,
फिर भी तेरा आभार है माँ!
बढिया
ReplyDeleteasadharan sakshatkaar
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