Tuesday, 23 February 2010

गाल गुलाबी हुए धूप के


इस मौसम में
आज दिखा है
पहला-पहला बौर आम का।

गाल गुलाबी
हुए धूप के
इन्द्रधनुष सा रंग शाम का।

सांस-सांस में
महक इतर सी
रंग-बिरंगे फूल खिल रहे,

हल्दी अक्षत के
दिन लौटे
पंडित से यजमान मिल रहे,
हर सीता के
मन दर्पण में
चित्र उभरने लगा राम का।

खुले-खुले
पंखों में पंछी
लौट रहे हैं आसमान से
जगे सुबह
रस्ते चौरस्ते
मंदिर की घंटी अजान से।

बर्फ पिघलने
लगी धूप से
लौट रहा फिर दिन हमाम का।
खुली-बन्द
ऑंखों में आते
सतरंगी सपने अबीर के।

द्वार-द्वार गा रहा
जोगिया मौसम
पद फगुआ कबीर के
रूक-रूक कर
चल रहा बटोही
इंतजार है किस मुकाम का

2 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. aakhiri panne pe likhi kavitayein maamooli maan lene ki ham bhool kar sakte hain aur bina padhe rah sakte hain lekin yaad rahe haashiye se uthi baatein aksar muddon ke beechobeech aa khadi hoti hai...

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