चित्र -गूगल से साभार |
एक गीत -अब बारूदी गन्ध न महके
अब बारूदी
गन्ध न महके
खुलकर हँसे चिनार |
हवा डोगरी
में लिख जाये
इलू -इलू या प्यार |
जलपरियाँ
लहरों से खेलें
गयीं जो कोसों-मील ,
फिर कल्हण
की राजतारंगिणी
गाये यह डल झील ,
नर्म उँगलियाँ
छेड़ें हर दिन
संतूरों के तार |
कली -कली
केसर की
घाटी में '' नूरी '' हो जाये ,
मौसम
सूफ़ी रंग में रंगकर
गली -गली फिर गाये ,
नफ़रत
अपनी जिद को
छोड़े मांगे प्रेम उधार |
शाल बुनें
कश्मीरी सुबहें
महकें दिन -संध्याएँ ,
लोकरंग
में रंगकर निखरें
सारी ललित कलाएँ ,
नये परिंदों से
अब बदले
घाटी का संभार |
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/08/2019 की बुलेटिन, "काकोरी कांड के सभी जांबाज क्रांतिकारियों को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-08-2019) को " मुझको ही ढूँढा करोगे " (चर्चा अंक- 3424) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति काश्मीर घाटी की में खुशियां फिर से खिलखिलाएं गी
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव भीनी प्रस्तुति।
ReplyDeleteआप सभी का हृदय से आभार
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर मनभावन सृजन...
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