Friday, 9 March 2018

एक गीत -सुख नहीं उधार लो

चित्र --साभार गूगल 


एक ताज़ा गीत -सुख नहीं उधार लो 

धूल जमे 
रिश्तों को 
फूल से बुहार लो |
बिखर गए 
जुड़े सा 
इन्हें भी संवार लो |

अफवाहों के 
बादल 
मौसम का दोष नहीं ,
नीड़ों से 
दूर उड़े 
पंछी को होश नहीं ,
अनचाहे 
पेड़ों से 
इन्हें भी उतार लो |

दरपन भी 
हँसता है 
हंसी को बिखेर दो ,
मौन 
गुनगुनाएगा 
वंशी को टेर दो ,
दुःख अपना 
मत बांटो
सुख नहीं उधार लो |

कुछ जादू -टोने 
भी 
आसपास रहते हैं ,
निर्मल 
जलधारा में 
विषधर सा बहते हैं ,
काजल के 
टीके से 
नज़र को उतार लो |
चित्र -गूगल से साभार 

12 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-03-2017) को "कम्प्यूटर और इण्टरनेट" (चर्चा अंक-2905) (चर्चा अंक-2904) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 11 मार्च 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अनजाने कर्म का फल “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. वाह!!!
    बहुत सुन्दर...

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  5. सुन्दर गीत ।

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  6. बहुत खूबसूरत रचना

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  7. सुंदर रचना

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  8. अति सुन्दर. बहुत प्यारा गीत. बधाई.

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  9. फूलों की बुहारी बड़ी प्यारी है ।

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