चित्र --साभार गूगल |
एक ताज़ा गीत -सुख नहीं उधार लो
धूल जमे
रिश्तों को
फूल से बुहार लो |
बिखर गए
जुड़े सा
इन्हें भी संवार लो |
अफवाहों के
बादल
मौसम का दोष नहीं ,
नीड़ों से
दूर उड़े
पंछी को होश नहीं ,
अनचाहे
पेड़ों से
इन्हें भी उतार लो |
दरपन भी
हँसता है
हंसी को बिखेर दो ,
मौन
गुनगुनाएगा
वंशी को टेर दो ,
दुःख अपना
मत बांटो
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-03-2017) को "कम्प्यूटर और इण्टरनेट" (चर्चा अंक-2905) (चर्चा अंक-2904) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 11 मार्च 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अनजाने कर्म का फल “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
बहुत बहुत आभार आपका
Deleteसुन्दर गीत ।
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteअति सुन्दर. बहुत प्यारा गीत. बधाई.
ReplyDeleteफूलों की बुहारी बड़ी प्यारी है ।
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