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चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल
साज साजिन्दे सभी महफ़िल में घबराने लगे
सब घराने आपकी मर्ज़ी से ही गाने लगे
भूल जाएगा ज़माना दादरा, ठुमरी, ग़ज़ल
अब नई पीठी को शापिंग माल ही भाने लगे
जिंदगी भी दौड़ती ट्रेनों सी ही मशरूफ़ है
आप मुद्द्त बाद आए और अभी जाने लगे
झील में पानी, हवा में ताज़गी मौसम भी ठीक
फूल में खुशबू नहीं भौँरे ये बतियाने लगे
प्यार से लोटे में जल चावल के दाने रख दिए
फिर कबूतर छत में मेरे हाथ से खाने लगे
हम भी बचपन में शरारत कर के घर में छिप गए
अब बड़े होकर ज़माने भर को समझाने लगे
बीच जंगल से गुजरते अजनबी को देखकर
आदतन ये रास्ते फिर फूल महकाने लगे
देखकर प्रतिकूल मौसम उड़ गए संगम से जो
ये प्रवासी खुशनुमा मौसम में फिर आने लगे
कवि जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |