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चित्र साभार गूगल |
एक गीत -हजारों फूल खिलते थे
कोई भी
मूड,मौसम हो
मग़र हम साथ चलते थे.
यही वो रास्ते
जिन पर
हज़ारों फूल खिलते थे.
कहाँ संकोच से
नज़रें मिलाना
मुस्कुराना है,
कहाँ अब
रूठने वाला कोई
किसको मनाना है,
यही मन्दिर था
जिसमें प्यार के
भी दिए जलते थे.
कहाँ अब
इत्र,खुशबू
तितलियों सा दिन सुहाना है,
कहाँ चेहरा
बदलकर
आईने का दिल लुभाना है,
यही ऑंखें थीं
जिनमें नींद
भी थी,ख़्वाब पलते थे.
कहाँ बज़रे पे
अब मौसम
कोई भी गीत सुनता है,
तुम्हारी
उँगलियों से
वक़्त अब स्वेटर न बुनता है,
कभी वो
चाँदनी,हम
रात तारों से निकलते थे
कवि -जयकृष्ण राय तुषार