चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-
कितना अच्छा मौसम यार पुराना था
कितना अच्छा मौसम यार पुराना था
घर- घर में सिलोन रेडियो गाना था
खुशबू के ख़त होठों के हस्ताक्षर थे
प्रेम की आँखों में गोकुल,बरसाना था
कौन अकेला घर में बैठा रोता था
सुख-दुःख में हर घर में आना-जाना था
रिश्तों में खटपट थी तू-तू ,मैं मैं भी
फिर भी मरते दम तक साथ निभाना था
महबूबा की झलक भी उसने देखी कब
बस्ती की नज़रों में वह दीवाना था
कहाँ रेस्तरां होटल फिर भी मिलना था
गाँव के बाहर पीपल एक पुराना था
गाय, बैल,चिड़ियों से बातें होती थी
बेज़ुबान पशुओं से भी याराना था
घर भर उससे लिपट के कितना रोये थे
बेटे को परदेस कमाने जाना था
बरसों पहले गाँव का ऐसा मंज़र था
नदियाँ टीले जंगल ताल मखाना था
कवि-जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
मन को यादों की गलियों में घुमाती शानदार गजल ।बहुत सारगर्भित लेखन है आपका आदरणीय । परंतु ये बाजा तो काफी बाद में आया है, ये मेरे पास भी सुरक्षित है 😧🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 06 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन
Deleteसुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका भाई नीतीश जी
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार
(6-12-21) को
तुमसे ही मेरा घर-घर है" (चर्चा अंक4270)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति|
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।
Deleteस्मृतियों का आँगन सुखद पुष्पों से सुवासित होता है।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
सादर।
हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteवाह बहुत ही खूबसूरत!
ReplyDeleteशब्दों का चयन बहुत ही शानदार!
आपका हृदय से आभार ।सादर अभिवादन
Deleteयादों से सजा सुन्दर शब्द-चित्र है, जिस से नयी पीढ़ी अनभिज्ञ भी है .. शायद ...
ReplyDeleteदरअसल परिवर्त्तन तो वैसे ही प्रकृति का नियम रहा है और हर पीढ़ियों की अपनी-अपनी यादें होती भी हैं .. सिलोन और विविध-भारती की जगह अब "सास-बहू" वाले तराने मन बहलाते हैं .. साथ ही एक और बदलाव, परिस्थिति और सोच में भी आयी है कि पहले अधिकतर लोग मजबूरी में कमाने बाहर जाते थे और परिवार के लोग लिपट कर रोते थे, पर आज बाहर या विदेश जाना एक उपलब्धि मानी जाती है, सक्षम लोग ही जा पाते हैं .. ऐसे में लोग ख़ुशी के साथ गर्व भी महसूस करते हैं .. शायद ...
हार्दिक आभार आपका
Deleteपढ़कर दिल में एक हूक-सी उठी तुषार जी। मैंने भी अपना बचपन एवं किशोरावस्था गांव में ही गुज़ारी है। बहुत-कुछ याद दिला दिया आपने। मैं भी आप ही की बात दोहराता हूँ - कितना अच्छा मौसम यार पुराना था।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार भाई साहब।सादर अभिवादन
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ,गाँव की पुरानी यादों का खजाना।
ReplyDeleteअप्रतिम!
आपका हृदय से आभार। सादर अभिवादन
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