एक भक्ति गीत -देवी गीत
जय माँ विंध्यवासिनी ,काली
अष्टभुजा महरानी |
गंगा मैया द्वार तुम्हारे
बहती हे कल्यानी |
पर्वत ,खोह ,नदी ,सागर में
तेरी ज्वाला जलती ,
ज्ञान ,मन्त्र या तंत्र नहीं
माँ सिर्फ़ भक्ति से मिलती ,
कालिदास बन गया
तुम्हारी महिमा से अज्ञानी |
तुम्ही हो मंशा, वैष्णो देवी
तुम्हीं हो मैहर वाली ,
सती ,भवानी ,दुर्गा माता
कलकत्ते की काली ,
कामरूप की कामख्या माँ
अष्टसिद्धि की दानी |
सीता ,लक्ष्मी ,पार्वती तुम
अन्नपूर्णा कहलाती ,
गीत, कला ,संगीत सुकोमल
ब्रह्माणी सिखलाती ,
जिस पर हुई तुम्हारी महिमा
परमहंस वह ज्ञानी |
शंख ,चक्र और गदा
शीश पर स्वर्णिम मुकुट सुहाए ,
चरण तुम्हारे चढ़ा भक्ति का
फूल नहीं मुरझाए ,
शैलसुता तुम विश्वस्वरूपा
मैया हो वरदानी |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
बहुत भावपूर्ण भक्ति गीत तुषार जी। माँ के सभी रूपों का वर्णन बहुत हृदय स्पर्शी है। हार्दिक शुभकामनाएं और आभार🙏🙏
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार | विंध्यवासिनी माँ आपका कल्याण करें |
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरनीय
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२०-०९-२०२०) को 'भावों के चंदन' (चर्चा अंक-३०३८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
अनीता जी हार्दिक आभार
Delete-बहुत सुंदर रचना।जय माँ काली।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार सर
Deleteभक्ति भाव से पूर्ण पावन सृजन।
ReplyDeleteमन की वीणा जी आपका हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुन्दर भावप्रवण रचना।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार आदरणीय
Deleteजय माँ विंध्यवासिनी ! बहुत सुंदर भक्तिमयी रचना।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteबहुत ही सुन्दर... भावपूर्ण भक्तिगीत।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
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