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चित्र -गूगल से साभार |
एक गीत -मछली तो चारा खायेगी
कोई भी
तालाब बदल दो
मछली तो चारा खायेगी |
एक उबासी
गंध हवा के
नाम वसीयत कर जायेगी |
गंध हवा के
नाम वसीयत कर जायेगी |
सत्ता का शतरंज /
बिसातों पर उजले -
काले मोहरे हैं ,
आप हमें
अनभिज्ञ न समझें
सबके सब परिचित चेहरे हैं ,
आप सभी
छल -छद्म करेंगे
जिससे की सत्ता आयेगी |
आप सदन
कहते हैं जिसको
वह लाक्षागृह से बदतर है ,
आज प्रजा की
चिंता किसको
राज सभा का दिल पत्थर है ,
राजगुरू को
लाभ मिलेगा जिससे-
वही युक्ति भायेगी |