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चित्र -गूगल से साभार |
एक नवगीत -बासीपन हवाओं में
फूल तो
हैं किन्तु
बासीपन हवाओं में |
लिख रहे
मौसम
सुहाना हम कथाओं में |
यंत्रवत
होने लगे
संवेदना के स्वर ,
मौन सा
रहने लगा है
कहकहों का घर ,
क़ैद हैं
हम आधुनिकता के
प्रभावों में |
जहाँ जलसा है
वहीं पर
त्रासदी है ,
रोज
आदमखोर
होती यह सदी है ,
लिख रहा
गोधूलि बेला
दिन ,दिशाओं में |
रोशनी है
रोशनी है
मगर गुम
होते दिया -बाती ,
अब मुंडेरों पर
सुबह
चिड़िया नहीं गाती ,
अब नहीं
सम्वाद
है सखियों -सखाओं में |