Tuesday, 18 December 2012

एक गीत -सूरज लगा सोने पहाड़ों में

चित्र गूगल से साभार 
एक गीत -सुबह अब देर तक सूरज लगा सोने पहाड़ों में 
सुबह अब 
देर  तक सूरज 
लगा सोने पहाड़ों में |
हमें भी 
आलसी, मौसम 
बना देता है जाड़ों में |

गुलाबी होंठ 
हाथों में 
लिए काफी जगाते हैं ,
लिहाफों में 
हम बच्चों की 
तरह ही कुनमुनाते हैं ,
न चढ़ती है 
न खुलती 
सिटकिनी ऊँचे किवाड़ों में |

कुहासे में 
परिंदे राह 
मीलों तक भटक जाते ,
कभी गिरकर के 
पेड़ों की 
टहनियों में अटक जाते ,
कोई कुश्ती में 
धोबी पाट 
दिखलाता अखाड़ों में |

नदी में 
चोंच से
लड़ते हुए पंछी लगे तिरने ,
गगन में 
सूर्य के घोड़े 
कुहासे में लगे घिरने ,
हवा का 
शाल पश्मीना 
चिपक जाता है ताड़ों में |

किसी को भी 
बुलाओ तो 
नहीं अब सुन रहा कोई ,
नया आलू 
अंगीठी में 
पलटकर भुन रहा कोई ,
खनक 
वैसी नहीं अब 
रात में बजते नगाड़ों में |

8 comments:

  1. बहुत प्यारा चित्रण प्रकृति का..

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  2. जाड़े की धूप सी... तन मन को गर्माहट पहुँचती रचना|

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  3. बहुत सुन्दर....
    प्यारी कविता, जैसे कोई पेंटिंग....

    सादर
    अनु

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  4. बेहतरीन,मनमोहक प्रकृति का सुंदर चित्रण ,,,,

    recent post: वजूद,

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  5. हवा का
    शाल पश्मीना
    चिपक जाता है ताड़ों में |

    नए प्रतीकों से प्रकृति चित्रण ...बहुत सुन्दर

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  6. वाह...
    बढ़िया शब्द चित्र !

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  7. अति सुन्दर लिखा है..

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