कवि कैलाश गौतम
कैलाश गौतम हिन्दी के अप्रतिम कवि हैं। गीत, कविता, दोहे, व्यंग्य कोई भी विषय उनकी कलम के लिए अपरिचित नहीं है। काव्यमंचों पर श्रोताओं के मन को झकझोरने वाले इस कवि की रचनाओं में विविधता देखने को मिलती है। कैलाश जी के बारे में सुप्रसिद्ध गीतकवि यश मालवीय कहते हैं - ‘‘कैलाश गौतम रिश्तों की छुवन और सम्बन्धों की मिठास के अप्रतिम कवि हैं। उनकी कविता ‘बड़की भौजी’ भारतीय जनमानस में पैठी पूजा-प्रार्थना जैसी एक ऐसी स्त्री है जो घर-परिवार को दिये की लौ की तरह प्रतिक्षण सहेजती रहती है। आत्मीयता का आलोक कदम-कदम पर अभिव्यंजित करने वाले कैलाश जी शायद इसीलिए अपने समकालीनों के बीच एकदम अलग खड़े किनारे के पेड़ जैसे नजर आते हैं।’’
09 दिसम्बर कैलाश गौतम की चैथी पुण्यतिथि है। इस अवसर पर हम उनकी लोकप्रिय रचना ‘बड़की भौजी’ अपने पाठकों के साथ साझा कर रहे हैं -

बड़की भौजी- कवि कैलाश गौतम
जब देखो तब बड़की भौजी हंसती रहती है
हंसती रहती है कामों में फंसती रहती है
झर-झर झर झर हंसी होठ पर झरती रहती है
घर का खाली कोना भौजी भरती रहती है।।
डोरा देह कटोरा आंखें जिधर निकलती है
बड़की भौजी की ही घंटों चर्चा चलती है
खुद से बड़ी उमर के आगे झुककर चलती है
आधी रात गये तक भौजी घर में खटती है।।
कभी न करती नखरा तिल्ला सादा रहती है
जैसे बहती नाव नदी में वैसे बहती है
सबका मन रखती है घर में सबको जीती है
गम खाती है बड़की भौजी गुस्सा पीती है।।
चौका चूल्हा खेत कियारी सानी पानी में
आगे-आगे रहती है कल की अगवानी में
पीढ़ा देती पानी देती थाली देती है
निकल गयी आगे से बिल्ली गाली देती है।।
भौजी दोनों हाथ दौड़कर काम पकड़ती है
दूध पकड़ती दवा पकड़ती दाम पकड़ती है
इधर भागती उधर भागती नाचा करती है
बड़की भौजी सबका चेहरा बांचा करती है।।
फुर्सत में जब रहती है खुलकर बतियाती है
अदरक वाली चाय पिलाती पान खिलाती है
भइया बदल गये पर भौजी बदली नहीं कभी
सास के आगे उलटे पल्ला निकली नहीं कभी।।
हारी नहीं कभी मौसम से सटकर चलने में
गीत बदलने में है आगे राग बदलने में
मुंह पर छींटा मार मार कर ननद जगाती है
कौआ को ननदोई कहती हंसी उड़ाती है।।
बुद्धू को बेमशरफ कहती भौजी फागुन में
छोटी को कहती है गरी चिरौंजी फागुन में
छठे समासे गंगा जाती पुण्य कमाती है
इनकी उनकी सबकी डुबकी स्वयं लगाती है।।
आंगन की तुलसी को भौजी दूध चढ़ाती है
घर में कोई सौत न आये यही मनाती है
भइया की बातों में भौजी इतना फूल गयी
दाल परसकर बैठी रोटी देना भूल गयी।।
चित्र से picasaweb.google.com साभार