Wednesday 17 January 2018

एक गीत -यह वसंत भी प्रिये ! तुम्हारे होठों का अनुवाद है


चित्र -गूगल से साभार 




एक गीत -यह वसंत भी प्रिये !
 तुम्हारे होठों का अनुवाद है 

तुमसे ही 
कविता में लय है 
जीवन में संवाद है |
यह वसंत भी 
प्रिये ! तुम्हारे 
होठों का अनुवाद है |

तुम फूलों के 
रंग ,खुशबुओं में 
कवियों के स्वप्नलोक में ,
लोककथाओं 
जनश्रुतियों में 
प्रेमग्रंथ में कठिन श्लोक में ,
जलतरंग पर 
खिले कमल सी 
भ्रमरों का अनुनाद है |

तुम्हें परखने 
और निरखने में 
सूखी कलमों की स्याही ,
कालिदास ने 
लिखा अनुपमा 
हम तो एक अकिंचन राही
तेरा हँसना 
और रूठना 
प्रियतम का आह्लाद है |
चित्र -गूगल से साभार 

9 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरूवार 18-01-2018 को प्रकाशनार्थ 916 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-01-2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2852 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  3. वाह!!!
    लाजवाब...

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  4. सुन्दर कविता ! किन्तु 'बच्चों की लोरी' वाली उपमा समझ में नहीं आई.

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    Replies
    1. सर बच्चों की लोरी ,सुखदा प्रियतम का आह्लाद कई उपमाएं है आप इसे प्रेम का एक डायमेंशन समझ लें कई रूप यहाँ है |वैसे यह प्रेम गीत है इसलिए आपके तर्क से भी मैं सहमत हूँ |सादर

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  5. वाह!!बहुत खूब।

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  6. बहुत खूबसूरत रचना

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