Wednesday, 9 November 2016

एक गीत -ये बनारस है



काशी /बनारस 


एक गीत -ये बनारस है 

ये बनारस है 
यहाँ रेशम न खादी है |
अष्टकमलों से 
महकती हुई वादी है |

वस्त्र तो इसके 
विचारों और मन्त्रों से बुने हैं 
इसे अपना घर स्वयं 
भगवान शंकर भी चुने हैं ,
यहाँ का कण -कण 
अघोरी या नमाजी है |

यहीं पर रैदास की वाणी 
पिघलती है 
गोद में लेकर इसे 
गंगा मचलती है 
यहाँ पूजा ,अर्चना 
प्रातः मुनादी है |

यहाँ घाटों पर 
चिलम के धुंए सजते हैं 
यहीं जीवन -मोक्ष के 
भी छंद रचते हैं 
यहाँ की हर एक सीढ़ी 
सरल -सादी है |

यह समय को रंग 
कितने रूप देता है 
यहाँ तुलसी छाँव 
कबिरा धूप देता है 
सभ्यताओं की 
यही माँ यही दादी है |

आरती गंगा जी की /सभी चित्र गूगल से साभार 

9 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.9.2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2522 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. बहुत खूब है बनारस पर गीत

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "'बंगाल के निर्माता' - सुरेन्द्रनाथ बनर्जी - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. बहुत सुन्दर शब्द रचना
    http://savanxxx.blogspot.in

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  5. सुन्दर प्रस्तुति।

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  6. आप सभी का हृदय से आभार

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  7. अगर आपकी अनुमति हो तो इसे अपने पेज पे पोस्ट कर दूँ.. साभार के साथ?

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