काशी /बनारस |
एक गीत -ये बनारस है
ये बनारस है
यहाँ रेशम न खादी है |
अष्टकमलों से
महकती हुई वादी है |
वस्त्र तो इसके
विचारों और मन्त्रों से बुने हैं
इसे अपना घर स्वयं
भगवान शंकर भी चुने हैं ,
यहाँ का कण -कण
अघोरी या नमाजी है |
यहीं पर रैदास की वाणी
पिघलती है
गोद में लेकर इसे
गंगा मचलती है
यहाँ पूजा ,अर्चना
प्रातः मुनादी है |
यहाँ घाटों पर
चिलम के धुंए सजते हैं
यहीं जीवन -मोक्ष के
भी छंद रचते हैं
यहाँ की हर एक सीढ़ी
सरल -सादी है |
यह समय को रंग
कितने रूप देता है
यहाँ तुलसी छाँव
कबिरा धूप देता है
सभ्यताओं की
यही माँ यही दादी है |
आरती गंगा जी की /सभी चित्र गूगल से साभार |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.9.2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2522 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत खूब है बनारस पर गीत
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "'बंगाल के निर्माता' - सुरेन्द्रनाथ बनर्जी - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द रचना
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteआप सभी का हृदय से आभार
ReplyDeleteअगर आपकी अनुमति हो तो इसे अपने पेज पे पोस्ट कर दूँ.. साभार के साथ?
ReplyDelete