यह प्रयाग है यहाँ धर्म की ध्वजा निकलती है
यह प्रयाग है
यहां धर्म की ध्वजा निकलती है
यमुना आकर यहीं
बहन गंगा से मिलती है।
संगम की यह रेत
साधुओं, सिद्ध, फकीरों की
यह प्रयोग की भूमि,
नहीं ये महज लकीरों की
इसके पीछे राजा चलता
रानी चलती है।
महाकुम्भ का योग
यहां वर्षों पर बनता है
गंगा केवल नदी नहीं
यह सृष्टि नियंता है
यमुना जल में, सरस्वती
वाणी में मिलती है।
यहां कुमारिल भट्ट
हर्ष का वर्णन मिलता है
अक्षयवट में धर्म-मोक्ष का
दीपक जलता है
घोर पाप की यहीं
पुण्य में शक्ल बदलती है।
रचे-बसे हनुमान
यहां जन-जन के प्राणों में
नागवासुकी का भी वर्णन
मिले पुराणों में
यहां शंख को स्वर
संतों को ऊर्जा मिलती है।
यहां अलोपी, झूंसी,
भैरव, ललिता माता हैं
मां कल्याणी भी भक्तों की
भाग्य विधाता हैं
मनकामेश्वर मन की
सुप्त कमलिनी खिलती है।
स्वतंत्रता, साहित्य यहीं से
अलख, जगाते हैं
लौकिक प्राणी यही
अलौकिक दर्शन पाते हैं
कल्पवास में यहां
ब्रह्म की छाया मिलती है।
पीठाधीश्वर जूना अखाड़ा स्वामी श्री अवधेशानन्द गिरी जी महाराज के श्रीचरणों में सादर समर्पित
चित्र से article.wn.com साभार
ऐसी आस्था की भूमि को हमारा भी नमन ... उम्दा प्रस्तुति ... शुभकामनाएँ
ReplyDeleteis kavita/geet ko maine 2001 ke prayag ke mahakumbha me swami awdheshanand giriji maharaj ko samarpit kiya tha.yeh ek aastha se judi hui kavita hai.aap bhi iska aanand uthayen.
ReplyDeleteसंगम की यह रेत
ReplyDeleteसाधुओं, सिद्ध, फकीरों की
यह प्रयोग की भूमि,
नहीं ये महज लकीरों की
इसके पीछे राजा चलता
रानी चलती है।
Prayag ki itni sundar tasveer nahi dekhi, Badhai.
ऐसी आस्था की भूमि को हमारा भी नमन|
ReplyDeleteयहां कुमारिल भट्ट
ReplyDeleteहर्ष का वर्णन मिलता है
अक्षयवट में धर्ममोक्ष का
दीपक जलता है
घोर पाप की यहीं
पुण्य में शक्ल बदलती है।
तीर्थराज प्रयाग की महिमा का भक्तिमय वर्णन करती यह पवित्र रचना बहुत अच्छी लगी।
तुषार जी, शुभकामनाएं स्वीकार करें।
सक्रांति के पावन पर्व पर प्रयाग की पवित्र भूमि को प्रणाम..... सुंदर रचना .....
ReplyDelete
ReplyDeleteलगा कि किसी सत्संग में आ गया....बड़ी शांति मिली, खास तौर पर स्वामी अवधेशानंद को देखकर ! लगा कि गुरुदर्शन हो गए ....
जबकि मैं आम तौर पर आस्तिक नहीं हूँ .....
इनके बारे में अधिक जानना है
अगर कभी कुछ लिखें तो सूचित करने का कष्ट अवश्य करें !
आभार !
सक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें आपको भी .....सादर
ReplyDeleteजय कृष्ण तुषार जी !! तीर्थराज प्रयाग पर सुन्दर रचना .. मकर संक्रांति पर हार्दिक बधाइयाँ ... आपकी कविता आज चर्चामंच पर है ...आपका सादर शुक्रिया
ReplyDeletehttp://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/blog-post_14.html
तीर्थराज प्रयाग को नमन .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सरल शब्दों में आप ने इस रचना में सम्पूर्ण वर्णन कर दिया है.
प्रभावी प्रस्तुति .
तीर्थराज प्रयाग को नमन .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सरल शब्दों में आप ने इस रचना में सम्पूर्ण वर्णन कर दिया है.
प्रभावी प्रस्तुति .
वाह... आपने बनारस और महाकुम्भ को शब्दों में बहुत सुन्दरता से ढाल दिया...मकर संक्रांति, लोहरी एवं पोंगल की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteपावन भूमि प्रयाग को नमन है...
ReplyDeleteनीरज
prayag raj ki mahima ko bahut hi sundar shabdon me piroya hai aapne .badhai .mere blog ''kaushal ''par ane ke liye hardik dhanywad .aate rahiyega .
ReplyDeleteतीर्थराज प्रयाग को नमन.बहुत सुन्दर प्रस्तुति.लोहड़ी और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनायें !
ReplyDeleteसंक्रांति के पावन अवसर पर तीर्थ राज प्रयाग का अनुपम शब्द चित्र !
ReplyDeleteतुषार जी बहुत बहुत धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
makar sankranti ki shubhkamnaayen .
ReplyDelete-Gyanchand marmagya
पुरे इतिहास ..समाज और संस्कृति का परिचय करवा दिया आपने अपनी इस कविता के माध्यम से ..बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए साधुवाद ढ़ेर सारी बधाईयाँ !
ReplyDeleteलोहड़ी, पोंगल एवं मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!
आपकी रचनाएं अच्छी लगीं । विशेषतः प्रेमगीत ,नये साल की तस्वीर ,स्वागत दिनमान आदि ।
ReplyDeleteपुरानी बातें ताजा हो गयी इस पोस्ट के साथ.......... पिछली साल हम भी बाबा अवधेशानंद गिरी जी के पंडाल में गये थे. सुंदर प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteनये दशक का नया भारत ( भाग- २ ) : गरीबी कैसे मिटे ?
aadarniya poojaji banaras ko kashi aur allahabad ko prayag kaha jata hai.yeh rachana allahabad/prayag ke mahakumbha per likhi gayi hai/bbanaras nahin
ReplyDeleteaadarniya poojaji banaras ko kashi aur allahabad ko prayag kaha jata hai.yeh rachana allahabad/prayag ke mahakumbha per likhi gayi hai/bbanaras nahin
ReplyDeleteप्रयाग महात्म पर बढ़िया रचना !
ReplyDeleteमहाकुम्भ का योग
ReplyDeleteयहां वर्षों पर बनता है
गंगा केवल नदी नहीं
यह सृष्टि नियंता है
यमुना जल में, सरस्वती
वाणी में मिलती है ..
प्रयाग की इस पावन धरती को हमारा शत शत नमन है ...
good.
ReplyDeleteमुझे तो इलाहाबाद बहुत अच्छा लगता है.
ReplyDelete_________________________
'पाखी की दुनिया' में 'अंडमान में एक साल...'
खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeletenice blog..
ReplyDeleteBanned Area News (Daily Update)
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यह प्रयाग है
ReplyDeleteयहां धर्म की ध्वजा निकलती है
यमुना आकर यहीं
बहन गंगा से मिलती है।
आपकी आस्था का प्रणाम ....!!
बहुत बढि़या।
ReplyDeleteAshish maurya 9129642231
ReplyDeleteप्रयाग नगरी संगम और आस्था की स्थली है। प्रयाग की इतनी सुंदर अभ्यर्थना कभी नहीं पढ़ी। सरस और सरल भाषा बहुत मनभावन है तुषार जी। हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏
ReplyDeleteयहां कुमारिल भट्ट
ReplyDeleteहर्ष का वर्णन मिलता है
अक्षयवट में धर्म-मोक्ष का
दीपक जलता है
घोर पाप की यहीं
पुण्य में शक्ल बदलती है।
वाह!!!
बहुत ही मनभावन प्रयाग सी पावन लाजवाब कृति।
धर्म और मोक्ष की भूमि प्रयाग का अद्भुत वर्णन है इस रचना में, बहुत खूब
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