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| चित्र साभार गूगल |
एक ताज़ा गीत.कलम ख़ामोश थी आज कुछ कोशिश किए.
कोई चिड़िया
नीलगगन से
मेरे आँगन में आ जाये.
मेरे प्रेम गीत को
फिर से फूल
पत्तियाँ, मौसम गाये.
बाहर का मौसम
अच्छा है
लेकिन मन में धुंध, तपन है,
चाँद कहीं पर
सोया होगा
खाली -खाली नीलगगन है,
खुशबू ओढ़े
बैठे होंगे
घाटी में पेड़ों के साये.
हिरन दौड़ते
तेज धूप में
नदियों की भुरभुरी रेत में,
फसलों से
बतियाते होंगे
कितने राँझे -हीर खेत में,
हरी भरी मेंड़ों पर
कोई जोड़ा
नीलकंठ आ जाये.
सूने वन में
बनजारों के संग
वंशी, मादल का मिलना,
उस पठार की
भूमि धन्य है
जिसमें हो फूलों का खिलना,
गंगा की धारा में
जैसे कोई
मांझी शंख बजाये.
कवि जयकृष्ण राय तुषार
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| चित्र साभार गूगल |


बिरसा मुंडा के जन्मदिवस पर इससे सुंदर कोई कविता नहीं पढ़ी आजत।
ReplyDeleteक
हार्दिक आभार आपका
Deleteबिरसा मुंडा के जन्मदिवस पर इससे सुंदर कोई रचना नहीं पढ़ी।
ReplyDeleteबेहद मनमोहक शब्द चित्र खींचा है आपने सर।
सादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १८ नवंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक आभार आपका
Deleteआपका हार्दिक आभार
Deleteअतिमनोरम गीत
ReplyDeleteव्वाहहहहहह
ReplyDeleteशानदार
वंदन
फूल, पत्तियाँ, गगन, चिड़ियाँ सभी तो गा रहे हैं परमात्मा का प्रेम गीत!! सुनने वाले कान चाहिए, आपने सुना और शब्दों में बुना, सुंदर सृजन!
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई
Deleteसुंदर
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteसुंदर
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