Friday, 28 November 2025

केंद्रीय G. S. T. कार्यालय प्रयागराज में साहित्य आयोजन

  कल शाम सेन्ट्रल G. S. T परिसर में कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ मेरे ग़ज़ल संग्रह का विमोचन भी हुआ. सभी आयुक्त एवं अपर आयुक्त गण मौजूद थे. आयोजन की जिम्मेदारी वरिष्ठ अनुवादक श्री उमेश कुमार मौर्य जी की थी. तीन दिवसीय पुस्तक प्रदर्शनी का समापन भी कल था. ऑफिस के सभी अधिकारी कर्मचारी इस साहित्य कुम्भ में शामिल थे.

मेरा काव्य पाठ

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मेरे ग़ज़ल संग्रह का विमोचन
G. S. T. आयुक्त महोदय एवं अपर
आयुक्त श्री रजनीकांत मिश्र जी
एवं एम. रहमान



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Friday, 21 November 2025

एक ताज़ा प्रेम गीत -हँसी -ठिठोली

 

चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा प्रेमगीत


बहुत दिनों के 

बाद आज फिर 

फूलों से संवाद हुआ.

हँसी -ठिठोली 

मिलने -जुलने का 

किस्सा फिर याद हुआ.


पानी की लहरों 

पर तिरते 

जलपंछी टकराये फिर,

पत्तों में उदास 

बुलबुल के 

जोड़े गीत सुनाये फिर 

आज प्रेम की 

लोक कथा का 

भावपूर्ण अनुवाद हुआ.


खुले -खुले 

आँगन में कोई 

खुशबू वंशी टेर रही,

भ्रमरों को 

सतरंगी तितली की 

टोली फिर घेर रही,

बंदी गृह से 

जैसे कोई 

मौसम फिर आज़ाद हुआ.

कवि जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल



Saturday, 15 November 2025

एक ताज़ा गीत -कोई मांझी शंख बजाये

 

चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा गीत.कलम ख़ामोश थी आज कुछ कोशिश किए.


कोई चिड़िया 

नीलगगन से 

मेरे आँगन में आ जाये.

मेरे प्रेम गीत को

फिर से फूल

पत्तियाँ, मौसम गाये.


बाहर का मौसम 

अच्छा है 

लेकिन मन में धुंध, तपन है,

चाँद कहीं पर 

सोया होगा 

खाली -खाली नीलगगन है,

खुशबू ओढ़े 

बैठे होंगे 

घाटी में पेड़ों के साये.


हिरन दौड़ते 

तेज धूप में 

नदियों की भुरभुरी रेत में,

फसलों से 

बतियाते होंगे 

कितने राँझे -हीर खेत में,

हरी भरी मेंड़ों पर 

कोई जोड़ा 

नीलकंठ आ जाये.


सूने वन में 

बनजारों के संग 

वंशी, मादल का मिलना,

उस पठार की 

भूमि धन्य है 

जिसमें हो फूलों का खिलना,

गंगा की धारा में 

जैसे कोई 

मांझी शंख बजाये.

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल

Sunday, 9 November 2025

एक आस्था का गीत. देवभूमि उत्तराखंड

 

भगवान केदारनाथ



यह ऋषियों की भूमि
यहां की कथा निराली है।
गंगा की जलधार यहां
अमृत की प्याली है।

हरिद्वार, कनखल, बद्री
केदार यही मिलते
फूलों की घाटी में
अनगिन फूल यहां खिलते,
देवदार चीड़ों के वन
कैसी हरियाली है।

शिवजी की ससुराल
यहीं पर मुनि की रेती है,
दक्ष यज्ञ की कथा
समय को शिक्षा देती है,
मनसा देवी यहीं
यहीं मां शेरावाली है।

हर की पैड़ी जलधारों में
दीप जलाती है,
गंगोत्री यमुनोत्री
अपने धाम बुलाती है,
हेमकुण्ड है यहीं
मसूरी और भवाली है।

पर्वत घाटी झील
पहाड़ी धुन में गाते हैं,
देव यक्ष गंधर्व
इन्हीं की कथा सुनाते हैं,
कहीं कुमाऊं और कहीं
हंसता गढवाली है।

लक्ष्मण झूला शिवानन्द की
इसमें छाया है,
शान्तिकुंज में शांति
यहां ईश्वर की माया है,
यहीं कहीं कुटिया भी
काली कमली वाली है।

भारत माता मंदिर में
भारत का दर्शन है,
सीमा पर हर वीर
यहां का चक्र सुदर्शन है,
इनके जिम्मे हर दुर्गम
पथ की रखवाली है।

उत्सवजीवी लोग यहां
मृदुभाषा बोली है,
यह धरती का स्वर्ग
यहां हर रंग रंगोली है,
वन में कैसी हिरनों की
टोली मतवाली है।

यज्ञ धूम से यहां सुगन्धित
पर्वत नदी गुफाएं
यहीं प्रलय के बाद जन्म लीं
सारी वेद ऋचाएं,
नीलकण्ठ पर्वत की कैसी
छवि सोनाली है।

कवि/गीतकार
जयकृष्ण राय तुषार


उत्तराखण्ड के समस्त निवासियों को समर्पित
चित्र uttarakhandevents.com से साभार

Tuesday, 4 November 2025

मेरे ग़ज़ल संग्रह का द्वितीय संस्करण

 मेरे ग़ज़ल संग्रह का द्वितीय संस्करण छप गया. नए कवर को डिजाइन किया है प्रोफ़ेसर अरुण जेतली जी ने. प्रकाशक लोकभारती. मूल्य 250 रूपये मात्र.


द्वितीय संस्करण


एक देशगान -कितना सुन्दर कितना प्यारा देश हमारा है

  लाल किला -चित्र गूगल से साभार  चित्र साभार गूगल एक देशगान  -कितना सुन्दर, कितना प्यारा  देश हमारा है  कितना सुंदर  कितना प्यारा  देश हमारा...