Thursday, 28 November 2019

एक ताजा गीत-नदी में जल नहीं है


एक गीत-नदी में जल नहीं है

धुन्ध में आकाश,
पीले वन,
नदी में जल नहीं है ।
इस सदी में
सभ्यता के साथ
क्या यह छल नहीं है ?

गीत-लोरी
कहकहे
दालान के गुम हो गये,
ये वनैले
फूल-तितली,
भ्रमर कैसे खो गये,
यन्त्रवत
होना किसी
संवेदना का हल नहीं है ।

कहाँ तुलसी
और कबिरा का
पढ़े यह मंत्र काशी,
लहरतारा
और अस्सी
मुँह दबाये पान बासी,
यहाँ
संगम है मगर
जलधार में कल-कल नहीं है ।

कला-संस्कृति
गीत-कविता
इस समय के हाशिये हैं,
आपसी
सम्वाद-निजता
लिख रहे दुभाषिये हैं,
हो गए
अनुवाद हम पर
कहीं कुछ हलचल नहीं है ।

सभी चित्र साभार गूगल


प्रयाग पथ पत्रिका का मोहन राकेश पर केंद्रित विशेषांक

  प्रयागपथ प्रयागपथ का नया अंक मोहन राकेश पर एक अनुपम विशेषांक है. इलाहाबाद विश्व विद्यालय जगदीश गुप्त, कृष्णा सोबती,अमरकांत डॉ रघुवंश, श्री...