समकालीन हिंदी ग़ज़ल- संग्रह |
समकालीन हिंदी ग़ज़ल -संग्रह -
साहित्य अकादेमी नई दिल्ली द्वारा अभी समकालीन हिंदी ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हुआ है | हिंदी ग़ज़ल के क्षेत्र में यह एक सराहनीय पहल है और इसका श्रेय जाता है इसके सम्पादक और चयनकर्ता भाई माधव कौशिक जी को | कौशिक जी स्वयं एक अच्छे ग़ज़ल कवि हैं और उम्दा सम्पादकीय दृष्टि से लैस हैं | विगत दिनों में कई ग़ज़ल विशेषांक आए उनमें सर्वाधिक लोकप्रिय नया ज्ञानोदय का ग़ज़ल महाविशेषांक था जिसमें हिंदी के साथ उर्दू के शायर भी शामिल किये गये थे |ग़ज़ल आज भी साहित्य की सबसे कारगर और लोकप्रिय विधा है |कम शब्दों में इसके द्वारा बहुत कुछ कहा जाता है और कहा जा सकता है |इस संग्रह की पृष्ठभूमि कुछ वर्ष पूर्व बनी थी जो अब फलीभूत हुई है |माधव कौशिक द्वारा लिखे गये सम्पादकीय के आलावा इसमें कुल सतहत्तर कवि शामिल किये गये हैं | कुछ नाम इस प्रकार हैं -दुष्यन्त कुमार ,हस्तीमल हस्ती ,अशोक रावत ,माधव कौशिक ,अदम गोंडवी ,उदय प्रताप सिंह ,हरजीत सिंह ,हरेराम समीप ,राजेन्द्र तिवारी ,ममता किरन ,वशिष्ठ अनूप ,एहतराम इस्लाम,कमलेश भट्ट कमल , जयकृष्ण राय तुषार ,कुँवर बेचैन ,आलोक श्रीवास्तव ,कुमार विनोद ,विज्ञान व्रत ,सुरेन्द्र सिघल ,चन्द्रसेन विराट ,तुफैल चतुर्वेदी ,लक्ष्मी शंकर बाजपेई ,सत्यप्रकाश शर्मा ,अखिलेश तिवारी ,विजय किशोर मानव ,हरिओम ,नूर मुहम्मद नूर कमलेश द्विवेदी दीक्षित दनकौरी ,दरवेश भारती आदि कवि शामिल हैं
कुल दो सौ चालीस पृष्ठों का यह संकलन पठनीय और संग्रहणीय है | माधव कौशिक जी का यह प्रयास सराहनीय है | हिंदी ग़ज़ल के पाठकों के लिए साहित्य अकादेमी द्वारा दिया गया यह एक अनमोल तोहफ़ा है |
सम्पादकीय अंश -
कुल मिलाकर यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है की हिन्दी ग़ज़ल के सरोकार कविता की तरह युगीन यथार्थ तथा व्यवस्था -विरोध के साथ -साथ आज के समाज की दुर्दशा ,भ्रष्टाचार ,स्वार्थपरता तथा नैतिक मूल्यों के निरंतर गिरते जाने से उत्पन्न उहापोह के विवेचन तथा विश्लेषण से जुड़े हैं |सामाजिक विसंगतियों तथा विद्रूपताओं को अभिव्यक्त करते हुए व्यंग्य की धार अत्यंत तुर्श बनी रहती है |यह तुर्शी भरा तेवर ग़ज़ल का प्राणतत्व है |साफ़ -सुथरी आम बोलचाल की भाषा में लिखी जाने वाली इन गजलों में पूरा जीवन अपनी सम्पूर्णता तथा गरिमा के साथ चित्रित हुआ है |
एक ग़ज़ल -कवि/ गज़लकार - माधव कौशिक
बस एक काम यही बार -बार करता था
भंवर के बीच से दरिया को पार करता था |
अजीब शख्स था ख़ुद अलविदा कहा लेकिन
हर एक शाम मेरा इंतज़ार करता था |
उसी की पीठ पर उभरे निशान ज़ख्मों के
जो हर लड़ाई में पीछे से वार करता था |
हवा ने छीन लिया अब तो धूप का जादू
नहीं तो पेड़ भी पत्तों से प्यार करता था |
सुना है वक्त ने उसको बना दिया पत्थर
जो रो वक्त को भी संगसार करता था |
पुस्तक का नाम -समकालीन हिंदी ग़ज़ल -संग्रह
प्रकाशक -साहित्य अकादेमी
सम्पादक एवं चयन -माधव कौशिक
मूल्य -रु० एक सौ पचास
पता -साहित्य अकादेमी
रवीन्द्र भवन ,35 फ़िरोजशाह मार्ग ,नई दिल्ली -110001
विक्रय विभाग -स्वाति मन्दिर मार्ग ,नई दिल्ली -110001
अजीब शख्स था ख़ुद अलविदा कहा लेकिन
ReplyDeleteहर एक शाम मेरा इंतज़ार करता था ..
शेर बता रहा है किताब कितनी लाजवाब रहने वाली है ... बधाई ...
माधव कौशिक जी को बधाई और आपको शुक्रिया !
ReplyDeleteबहुत खूब..
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