चित्र -गूगल से साभार |
पर्वतों का
माथ छूकर
टहनियों का
हाथ छूकर
फिर नया दिनमान आया |
नया संवत्सर
हमारे घर
नया मेहमान आया |
सूर्यमुखियों के
खिले चेहरे
हमें भी दिख रहे हैं ,
कुछ नई
उम्मीद वाले
गीत हम भी लिख रहे हैं ,
ज़ेहन में
भुला हुआ फिर से
कोई उपमान आया |
पेड़ पर
ऊंघते परिन्दे
जाग कर उड़ने लगे हैं ,
नए मांझे
फिर पतंगों की
तरफ बढ़ने लगे हैं ,
घना कोहरा
चीरकर मन में
नया अरमान आया |
चीरकर मन में
नया अरमान आया |
नई किरणों
से नई आशा
नई उम्मीद जागे ,
पत्तियों के
साथ ताज़े फूल
गूँथे नए धागे ,
खुशबुओं का
शाल ओढ़े
फिर नया पवमान आया |
खूंटियों पर
टंगे कैलेन्डर
हवा में झूलते हैं ,
हम इन्हीं
को देखकर
बीता हुआ कल भूलते हैं ,
चलो मिलकर
पियें काफ़ी
किचन से फ़रमान आया |
[यह गीत दिनांक 28-01-2013 को दैनिक जागरण के सप्तरंग पुनर्नवा साहित्यिक पृष्ठ पर प्रकाशित हो गया है |हम सम्पादक व सुप्रसिद्ध कथाकार राजेन्द्र राव जी के विशेष आभारी हैं ]
सुन्दर मनभावन कविता ....... अविरल प्रवाहमयी .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत तुषार जी....
ReplyDeleteलयबद्ध और भावपूर्ण भी....
सादर
अनु
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 17-01-2013 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
.. आज की नयी पुरानी हलचल में ...फिर नया दिनमान आया ......संगीता स्वरूप
. .
सार्थक और सटीक!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
उम्मीदों से भरी सुन्दर रचना। पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर। अच्छा लगा।
ReplyDelete~ मधुरेश
मनमोहक गीत ....बहुत सुंदर
ReplyDeleteकिचन का फरमान नजर अन्दाज न कर बैठियेगा, अरमान ढह जायेंगे।
ReplyDeleteकिचनवाली को भी इस सुन्दर तट पर बुला लीजिये -कुर्सियाँ तो हैं ही 1
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteNew post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
New post: कुछ पता नहीं !!!
आदर्णीय भाई उदयवीर सिंह जी ,धीरेन्द्र जी ,अनु जी ,संगीता जी ,मयंक जी ,मधुरेश जी डॉ ० मोनिका जी ,भाई प्रवीण पाण्डेय जी ,आदरणीय प्रतिभा जी और भाई कालीपद प्रसाद जी उत्साहवर्धन हेतु आप सभी का बहुत -बहुत आभार |
ReplyDeleteनयी आस की किरणें बिखेरता हुआ खूबसूरत गीत ! बहुत अच्छा लगा पढ़कर!
ReplyDelete~सादर!!!
वाह ... अनुपम भाव संयोजन
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति .....आप भी पधारो आपका स्वागत है मेरा पता है ...http://pankajkrsah.blogspot.com
ReplyDeleteपेड़ पर
ReplyDeleteऊंघते परिन्दे
जाग कर उड़ने लगे हैं ,
नए मांझे
फिर पतंगों की
तरफ़ बढ़ने लगे हैं ,
घना
कोहरा चीरकर
मन में नया अरमान आया ..
नवीन विचार ओर नए भाव लिए ... सुन्दर नवगीत है ... बधाई ...
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
दिनमान का मनमोहक फरमान..
ReplyDeleteऋतु परिवर्तन की सुन्दर कविता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर... प्रकृति परिवर्तन पर प्रभावपूर्ण प्रस्तुति।
ReplyDeleteआप सभी का इस कविता को पढ़कर मेरा उत्साहवर्धन करने हेतु बहुत -बहुत आभार |
ReplyDeleteमनभावन अहसासों का कलकल प्रवाह...बहुत सुन्दर
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