![]() |
चित्र -गूगल से साभार |
ओ प्रवासी !
लौट आ
सावन बुलाता है |
हाथ में
मेंहदी लगा
कंगन बुलाता है |
क्या नहीं
तेरे चमकते शहर
स्वप्निल गांव में ,
मदभरी
बहती हवाएं
गुलमोहर की छावं में ,
हर गली
कचनार का
यौवन बुलाता है |
तुमने
सलोनी साँझ के
सपने नहीं देखे ,
नीलकंठी
मोर के
पखने नहीं देखे ,
ओ गगन के
मेघ मेरा
मन बुलाता है |
रेशमी
जूड़े गुँथी
कलियाँ महकती हैं ,
चन्द्रवदना
बिजलियाँ
नभ में चमकती हैं ,
झूलता
सपनों भरा
आंगन बुलाता है |
तुझ बिना
बिन्दिया न
माथे पर लगाऊँगी ,
कजलियों
के गीत
होठों पर न लाऊंगी ,
आ तुम्हें
यह नेह का
[यह मेरा प्रारम्भिक दौर का गीत है जो 1 अगस्त 1993 को आज हिन्दी दैनिक के साप्ताहिक में प्रकाशित हुआ था ]