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चित्र -साभार गूगल |
एक गीत -कहीं देखा गाछ पर गाती अबाबीलें
ढूँढता है
मन हरापन
सूखतीं झीलें |
कटे छायादार
तरु अब
ठूँठ ही जी लें |
धूप में
झुलसे हुए
चेहरे प्रसूनों के ,
घर -पते
बदले हुए हैं
मानसूनों के ,
कहीं देखा
गाछ पर
गाती अबाबीलें |
खेत -वन
आँगन
हवा में भी उदासी है ,
कृष्ण का
उत्तंग -
बादल भी प्रवासी है ,
प्यास
चातक चलो
अपने होंठ को सी लें |
मई भूले
जून का
चेहरा लवर सा है ,
हर तरफ़
दावाग्नि
मौसम बेख़बर सा है ,
सुबह -संध्या
दिवस चुभती
धूप की कीलें |
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चित्र -साभार गूगल |