Monday, 3 June 2019

एक गीत -कहीं देखा गाछ पर गातीं अबाबीलें


चित्र -साभार गूगल 


एक गीत -कहीं देखा गाछ पर गाती अबाबीलें 

ढूँढता है 
मन हरापन 
सूखतीं झीलें |
कटे छायादार 
तरु अब 
 ठूँठ ही जी लें |

धूप में 
झुलसे हुए
चेहरे प्रसूनों के ,
घर -पते 
बदले हुए हैं 
मानसूनों के ,
कहीं देखा 
गाछ पर 
गाती अबाबीलें |

खेत -वन 
आँगन 
हवा में भी उदासी है ,
कृष्ण का 
उत्तंग -
बादल भी प्रवासी है ,
प्यास 
चातक चलो 
अपने होंठ को सी लें |

मई भूले 
जून का 
चेहरा लवर सा है ,
हर तरफ़ 
दावाग्नि 
मौसम बेख़बर सा है ,
सुबह -संध्या 
दिवस चुभती 
धूप की कीलें |


चित्र -साभार गूगल 

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