Tuesday 9 November 2010

स्मृति-शेष पिता को याद करते हुए

स्व0 रुद्र प्रताप राय
15 अगस्त 1936 - 31 अक्टूबर 2010

मित्रों ज्योति पर्व दीपावली के ठीक पांच दिन पूर्व मुझे गहरा सदमा लगा। मेरी पत्नी मंजुला राय के सिर से पिता का साया और मेरे सिर से पिता तुल्य श्वसुर का साया उठ गया। पिता जी 31 अक्टूबर 2010 को हम सबसे विदा ले लिए। सामने दीपावली का पर्व था अतः मैं आप सबको दुखी नहीं करना चाह रहा था क्योंकि मेरा एक शेर है - किसी लमहा अगर कोई हमें खुशहाल लगता है। मैं अपने गम और उसके बीच में दीवार करता हूं। मैंने भी आप सबकी खुशी और अपने गम केबीच में एक दीवार खड़ी कर दिया। पिता की यादें ही अब हमारे पास धरोहर हैं। पिता रुद्रप्रताप राय का जनम 15 अगस्त 1936 को जनपद जौनपुर में हुआ था। लोगों के बीच में रुदल बाबू के नाम से लोकप्रिय थे। एक सहृदय इन्सान, एक ख्यातिलब्ध अधिवक्ता को हमने खो दिया। पिता रुद्रप्रताप राय उस जमाने में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अपनी उच्च शिक्षा हासिल की थी। पत्नी पद्मा राय बेटियां अनुराधाराय, मृदुला राय, मंजुला राय बेटे अतुल कुमार राय, अजय राय बहू माया राय, नीलम राय प्रपौत्र अंकित राय, आयुष और यश की ओर से तथा मैं अपनी ओर से पिता को एक काव्यात्मक श्रद्धांजलि दे रहा हूं। यह गीत उन सबके पिता को समर्पित है जो अब स्मृति शेष हैं -

स्मृति शेष  पिता को याद करते हुए 

पिता!
घर की खिड़कियों
दालान में रहना।
यज्ञ की 
आहुति, कथा के
पान में रहना।

जब कभी
माँ को
तुम्हारी याद आयेगी,
अर्घ्य 
देगी तुम्हें
तुम पर जल चढ़ायेगी,
और तुम भी
देवता
भगवान में रहना।

अब नहीं
आराम कुर्सी,
बस कथाओं में रहोगे,
प्यार से
छूकर हमारा मन
समीरन में बहोगे,
फूल की
इन खुशबुओं में
लॉन  में रहना।

माँ!
हुई जोगन
तुम्हारा चित्र मढ़ती है,
भागवत 
के पृष्ठ सा 
वह तुम्हें पढ़ती है ,
स्वर्ग में
तुम भी 
उसी के ध्यान में रहना |

चाँद-तारों से 
निकलकर
कभी तो आना, 
हम अगर
भटकें, हमें फिर
राह दिखलाना,
सात सुर में
बांसुरी की
तान में रहना।

पिता!
हमने गलतियां की हैं
क्षमा करना,
हमें दे
आशीष
घर धन-धान्य से भरना,
तुम
हमारे गीत में
ईमान में रहना।

चित्र  avdevantimes.blogspot.com से साभार


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