गीत कवि श्री माहेश्वर तिवारी जी धर्मपत्नी संग |
एक गीत -वरिष्ठ गीतकवि माहेश्वर तिवरी के गीत
गीत,ग़ज़लें
नज़्म,
भाषा के सरल अनुवाद में।
एक वंशी
बज रही
अब भी मुरादाबाद में।
गीत का
डमरू
बजाते यहीं माहेश्वर,
भाव,भाषा
को सजाते
स्वर्ण के अक्षर,
इन्हें पढ़ना
खुली छत पर
पंचमी के चांद में ।
गीत वन हैँ
ये कनेरों,
हरसिंगारों के
उड़ रहे
हारिल
यहाँ मौसम बहारों के,
आरती की
चाय टेबल पर
मुख़र संवाद में ।
भोर में
मासूम सा
दिनमान उगता है,
यहाँ बस्ती
का सुनहरा
स्वप्न जगता है,
नया पंछी
पंख खोले
उड़ रहा आहलाद में।
पीतलों का
शहर अपने
पर्व,उत्सव जी रहा है,
बुन रहा है
वस्त्र सुंदर
खोंच को भी सी रहा है,
आज की
यह बज़्म है
त्यागी ज़िगर की याद में।
कवि जयकृष्ण राय तुषार
कुटुंब की देखभाल करने वाली आरती |
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