Friday 1 April 2016

एक गीत -शायद ऐसा मीत नहीं है

चित्र -गूगल से साभार 




क गीत -शायद ऐसा मीत नहीं है 

फूल -तितलियाँ 
खुशबू भी है 
लेकिन मन में गीत नहीं है |
जो हँसता -रोता हो 
संग -संग 
शायद ऐसा  मीत नहीं है |

आँखे -नींद 
यामिनी सुंदर 
लेकिन सपने टूट गए  हैं,
दूर निकल जाने 
की जिद में 
परिचित रस्ते छूट गए हैं ,
अब न हारने का 
कोई ग़म और 
जीत भी जीत नहीं है |

शहर फूस के 
और सुलगती 
सिगरेटों के आसमान हैं ,
ओहदों की 
कुण्डी लटकाए 
रिश्ते -नाते घर -मकान हैं ,
हंसी -ठहाके 
महफ़िल सब है 
लेकिन वह संगीत नहीं है |
चित्र -गूगल से साभार 

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-04-2016) को "फर्ज और कर्ज" (चर्चा अंक-2300) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    मूर्ख दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. bahut sundar geet hardik badhai

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  3. दूर निकल जाने की जिद में परिचित रस्ते छूट गए हैं , अब न हारने का कोई ग़म और जीत भी जीत नहीं है |

    वाह लाजवाब पंक्तिया :)

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  4. बहुत बढ़िया

    ReplyDelete

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