Thursday 24 December 2015

एक गीत -कुछ सपना नया सजाना है

चित्र -गूगल से साभार 


मित्रों नव वर्ष आप सभी के लिए शुभ और मंगलमय हो दुनिया भर में शांति कायम हो |सब कुछ अच्छा हो |सब कुछ सुहाना हो |
एक गीत -नया साल आया है 

नया साल आया है 
इसको गले लगाना है |
इसकी आँखों में कुछ 
सपना नया सजाना है |

हरियाली हो ,फूलों का 
हर रस्ता रहे ठिकाना ,
मिलने -जुलने का हम 
हर दिन ढूंढे नया बहाना ,
प्यार -मोहब्बत का 
सबको पैगाम सुनाना है |

वन में हिरनी भरे कुलांचे 
चिड़िया आंगन चहके ,
कोई अपनी राह न भूले 
कोई कदम न बहके ,
सीधी -सादी कोई 
सुन्दर राह बनाना है |

हर उत्सव में शामिल होंगे 
हम सब हैं सैलानी ,
याद रहे रसखान ,सूर 
तुलसी ,मीरा की बानी ,
मौसम कोई हो 
हंसकर के हाथ मिलाना है |

रहे सलामत देश ,देश का 
सुन्दर ताना -बाना ,
सब कुछ भूलें याद रहे 
आज़ादी का अफ़साना ,
भारत माँ के चरणों में 
कुछ फूल चढ़ाना है |
चित्र -गूगल से साभार 

Wednesday 23 December 2015

एक लोकभाषा कविता -नया साल हौ


एक लोकभाषा कविता -नया साल हौ 
आम आदमी 
फटेहाल हौ 
कइसे समझीं 
नया साल हौ 

धुंआ ओढ़िके
दिन फिर निकली 
फिर कोहरा फिर 
छाई बदली 
फिर पाला फसलन 
के मारी 
मौसम कै फिर 
चली कटारी 
किस्मत में 
सूखा -अकाल हौ 

परधानी में 
वोट बिकल हौ 
कैसे आपन देश 
टिकल हौ 
नियम -नीति कुछ 
समझ न आवै
राजनीति सबके 
भरमावै 
धुंआ -धुंआ 
सबकर मशाल हौ 

प्रेम और सद्भाव 
झुरायल 
रिश्ता -नाता 
सब हौ घायल 
दुनिया में 
आतंक मचल हौ 
अबकी खुद 
सरपंच फंसल हौ 
आंख -आंख में 
टुटल बाल हौ 
चित्र -गूगल से साभार 

Monday 21 December 2015

एक गीत -आया है नया साल


चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -आया है नया साल 
आया है नया साल 
चलो खुशियाँ मनाएं |
कुछ मान -मनौती लिए 
संगम में नहाएँ |

क्यारी में खिलें फूल 
तो खेतों में फसल हो ,
सागर से जो निकले तो 
हो अमृत न गरल हो ,
चिड़ियों की चहक 
फूलों की खुश्बू को बचाएं |

ईमान से मेहनत से 
तरक्की हो हमारी ,
इस देश की मिटटी तो 
है देवों को भी प्यारी ,
हम याद करें अपने 
शहीदों की कथाएं |

हर भूखे को रोटी मिले 
इक थाली हो ऐसी ,
निर्बल को सहारा मिले 
खुशहाली हो ऐसी ,
अब सरहदें दुनिया की 
नहीं खून बहाएं |
चित्र -गूगल से साभार 

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...