Monday 20 January 2014

एक गीत - अनकहा ही रह गया कुछ, रख दिया तुमने रिसीवर

चित्र -गूगल से साभार 
एक गीत --अनकहा ही रह गया कुछ 
अनकहा ही 
रह गया कुछ 
रख दिया तुमने रिसीवर |
हैं प्रतीक्षा में 
तुम्हारे 
आज भी कुछ प्रश्न- उत्तर |

हैलो ! कहते 
मन क्षितिज पर 
कुछ सुहाने रंग उभरे ,
एक पहचाना 
सुआ जैसे 
सिंदूरी आम कुतरे ,
फिर किले पर 
गुफ़्तगू
करने लगे बैठे कबूतर |

नहीं मन को 
जो तसल्ली 
मिली पुरवा डोलने से ,
गीत के 
अक्षर सभी 
महके तुम्हारे बोलने से ,
हुए खजुराहो -
अजंता 
युगों से अभिशप्त पत्थर |

कैनवस पर 
रंग कितने 
तूलिका से उभर आये ,
वीथिकाओं में 
कला की 
मगर तुम सा नहीं पाये ,
तुम हंसो तो 
हंस पड़ेंगे 
घर ,शिवाले, मौन दफ़्तर |

सफ़र में 
हर पल तुम्हारे 
साथ मेरे गीत होंगे ,
हम नहीं 
होंगे मगर ये 
रात -दिन के मीत होंगे ,
यही देंगे 
भ्रमर गुंजन 
तितलियों के पंख सुन्दर |
चित्र -गूगल से साभार 

Thursday 16 January 2014

एक गीत -शहर के एकांत में

चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -शहर के एकांत में  
शहर के 
एकांत में 
हमको सभी छलते |
ढूंढने से 
भी यहाँ 
परिचित नहीं मिलते |

बांसुरी के 
स्वर कहीं 
वन -प्रान्त में खोए ,
माँ तुम्हीं को 
याद कर 
हम देर तक रोए ,
धूप में 
हम बर्फ़ के 
मानिन्द हैं गलते |

रेलगाड़ी 
शोरगुल 
सिगरेट के धूँए ,
प्यास 
अपनी ओढ़कर 
बैठे सभी कूँए ,
यहाँ 
टहनी पर 
कंटीले फूल बस खिलते |

गाँव से 
लेकर चले जो 
गुम हुए सपने ,
गांठ में 
दम हो तभी 
ये शहर हैं अपने ,
यहाँ 

सांचे में सभी 
बाज़ार के ढलते |

भीड़ में 
यह शहर 
पाकेटमार जैसा है ,
यहाँ पर 
मेहमान 
सिर पर भार जैसा है ,
भीड़ में 
तनहा हमेशा 
हम सभी चलते |


[नवगीत की पाठशाला से साभार -मेरे इस गीत को आदरणीय पूर्णिमा जी ने नवगीत की पाठशाला में प्रकाशित किया था ]

Wednesday 8 January 2014

एक गीत -इस मुश्किल मौसम में तुमने

चित्र -गूगल से साभार 
एक गीत -
इस मुश्किल मौसम में तुमने   
इस मुश्किल 
मौसम में तुमने 
माँगा मुझसे गीत प्यार का |
गीत तुम्हारे 
मन के होंगे 
पहले मौसम हो बहार का |

धुंध भरी 
संध्याएँ -सुबहें 
दिन उजले हो गए हाशिए ,
अनगिन 
भाषा अर्थ तुम्हारे 
कैसे पढ़ते हम दुभाषिए ,
शब्द थके हैं 
कलम न स्याही 
मन का सागर बिना ज्वार का |

हरियर सपने 
ढके ओस में 
कुछ दिन है बसंत आने दो ,
खुले गगन में 
खुली धूप में 
नये परिंदों को गाने दो ,
हिमपातों के 
बाद हंसेगा 
इस घाटी में वन चिनार का |

जूड़े में मत 
फूल टांकना 
मेरे गीत महक जायेंगे ,
गीत अगर 
कुछ जादा महके 
मेरे पांव बहक जायेंगे ,
पंचम  दा 
सा हम गायेंगे 
सुर मिलने दो इस सितार का |

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...