Monday 11 February 2013

एक गीत -यह जरा सी बात पूरे शहर को खलने लगी है

चित्र -गूगल से साभार 
एक गीत -यह जरा सी बात 
फिर गुलाबी 
धूप -तीखे 
मोड़ पर मिलने लगी है |
यह 
जरा सी बात पूरे 
शहर को खलने लगी है |

रेशमी 
जूड़े बिखर कर 
गाल पर सोने लगे हैं ,
गुनगुने 
जल एड़ियों को 
रगड़कर धोने लगे हैं ,
बिना माचिस 
के प्रणय की 
आग फिर जलने लगी है |

खेत में 
पीताम्बरा सरसों 
तितलियों को बुलाये ,
फूल पर 
बैठा हुआ भौंरा 
रफ़ी के गीत गाये ,
सुबह -
उठकर, हलद -
चन्दन देह पर मलने लगी है |

हवा में 
हर फूल की 
खुशबू इतर सी लग रही है ,
मिलन में 
बाधा अबोली 
खिलखिलाकर जग रही है ,
विवश होकर 
डायरी पर 
फिर कलम चलने लगी है |

कुछ हुआ है 
ख़्वाब दिन में 
ही हमें आने लगे हैं ,
पेड़ पर 
बैठे परिन्दे 
जोर से गाने लगे हैं ,
सुरमई 
सी शाम 
अब कुछ देर से ढलने लगी है |
चित्र -गूगल से साभार 

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...