Sunday 4 August 2013

एक गीत -एक साहसी चिड़िया उलझी

चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -एक साहसी चिड़िया उलझी 
एक साहसी 
चिड़िया उलझी
राजनीति के जाल में |
मगरमच्छ
जबड़े फैलाए
नीलकमल के ताल में |

पथ में
घने बबूलों वाली
उलझी हुई टहनियाँ हैं ,
हम सैलानी
बंधे हाथ हैं
घायल हुई कुहनियाँ हैं ,
रेत भुरभुरी
उलझ गई है
घने रेशमी बाल में |

नया सूर्य
घिर गया बादलों से
धुंधला -धुंधला हर दिन ,
फूलों के
मौसम के सपने
रहे देखते हम पल -छिन ,
इंदर राजा
उलझे केवल
जाँच और पड़ताल में |

सच कहना
ईमान दिखाना
कितना भारी पड़ता है ,
भगत सिंह
सत्ता की आँखों में
हर युग में गड़ता है ,
परजा बहती
रहे बाढ़ में
हाकिम बैठे माँल में |

चुप रहने पर 
मौन उभरता 
गाओ तो जंगल डरता है ,
देखो अब 
मत कहना साथी 
एक अकेला क्या करता है ,
जब चाहोगे 
राह मिलेगी 
आसमान ,पाताल में |

[यह कविता अमर उजाला के साहित्य पेज नई ज़मीन में [18-08-2013]प्रकाशित है |हम सम्पादक श्री यशवंत व्यास जी के आभारी हैं ]

21 comments:

  1. उलझेगी, पर उड़ेगी चिड़िया..

    ReplyDelete
  2. ऐसे सुन्दर गीत का गान, निश्चित दे देता है समाधान!

    ReplyDelete
  3. उछालें मारता हुआ नवगीत ...
    राह जरूर मिलती है ...

    ReplyDelete
  4. अति सुन्दर कृति....

    ReplyDelete
  5. संवेदनापूर्ण अभिव्यक्ति!!

    ReplyDelete
  6. संवेदनापूर्ण अभिव्यक्ति!!

    ReplyDelete
  7. बहुत ही अच्छा गीत !एक गीतकार की सामायिक घटना पर भावनात्मक अभिव्यत्क्ति।

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर नवगीत..बधाई हो।

    ReplyDelete
  9. आपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर "ब्लॉग - चिठ्ठा" में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।

    ReplyDelete
  10. बहुत ही बेहतरीन रचना...
    :-)

    ReplyDelete
  11. चुप रहने पर
    मौन उभरता
    गाओ तो जंगल डरता है ,
    देखो अब
    मत कहना साथी
    एक अकेला क्या करता है ,
    जब चाहोगे
    राह मिलेगी
    आसमान ,पाताल में |

    प्रेरक नवगीत

    ReplyDelete
  12. सच कहना
    ईमान दिखाना
    कितना भारी पड़ता है ,
    भगत सिंह
    सत्ता की आँखों में
    हर युग में गड़ता है ,
    परजा बहती
    रहे बाढ़ में
    हाकिम बैठे माँल में |

    ----------------------

    बेहतरीन तेवर के साथ नवगीत जैसा नवगीत

    ReplyDelete
  13. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  14. कवि कृति हमेशा समकालीन विडंबनाओं को उजागर करती है - एक सशक्त रचना! साधुवाद !

    ReplyDelete
  15. सुंदर रचना...

    ReplyDelete
  16. आपकी इस प्रस्तुति को शुभारंभ : हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 1 अगस्त से 5 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।

    कृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा

    ReplyDelete
  17. वाह बहुत ही श्रेष्ठ अभिव्यक्ति ,

    ReplyDelete

  18. ☆★☆★☆


    चुप रहने पर मौन उभरता
    गाओ तो जंगल डरता है
    देखो अब मत कहना साथी
    एक अकेला क्या करता है
    जब चाहोगे राह मिलेगी आसमान , पाताल में

    एक साहसी चिड़िया उलझी राजनीति के जाल में
    मगरमच्छ जबड़े फैलाए नीलकमल के ताल में

    वाह ! वाऽह…! वाऽहऽऽ…!
    आदरणीय बंधुवर जयकृष्ण राय तुषार जी
    आपके नवगीतों का मैं पुराना प्रशंसक हूं...
    बहुत श्रेष्ठ लिखते हैं आप !
    इस उत्कृष्ट रचना के लिए भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं स्वीकार करें !


    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  19. परजा बहती
    रहे बाढ़ में
    हाकिम बैठे माँल में |

    भई वाह ..
    बधाई !

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...