Monday 6 May 2013

समकालीन हिंदी ग़ज़ल -संग्रह -प्रकाशक साहित्य अकादेमी -एक अवलोकन

समकालीन हिंदी ग़ज़ल- संग्रह 
समकालीन हिंदी ग़ज़ल -संग्रह -

साहित्य अकादेमी नई दिल्ली द्वारा अभी समकालीन हिंदी ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हुआ है | हिंदी ग़ज़ल के क्षेत्र में यह एक सराहनीय पहल है और इसका श्रेय जाता है इसके सम्पादक और चयनकर्ता भाई माधव कौशिक जी को | कौशिक जी स्वयं एक अच्छे ग़ज़ल कवि हैं और उम्दा सम्पादकीय दृष्टि से लैस हैं | विगत दिनों में कई ग़ज़ल विशेषांक आए उनमें सर्वाधिक लोकप्रिय नया ज्ञानोदय का ग़ज़ल महाविशेषांक था जिसमें हिंदी के साथ उर्दू के शायर भी शामिल किये गये थे |ग़ज़ल आज भी साहित्य की सबसे कारगर और लोकप्रिय विधा है |कम शब्दों में इसके द्वारा बहुत कुछ कहा जाता है और कहा जा सकता है |इस संग्रह की पृष्ठभूमि कुछ वर्ष पूर्व बनी थी जो अब फलीभूत हुई है |माधव कौशिक द्वारा लिखे गये सम्पादकीय के आलावा इसमें कुल सतहत्तर कवि शामिल किये गये हैं | कुछ नाम इस प्रकार हैं -दुष्यन्त कुमार ,हस्तीमल हस्ती ,अशोक रावत ,माधव कौशिक ,अदम गोंडवी ,उदय प्रताप सिंह ,हरजीत सिंह ,हरेराम समीप ,राजेन्द्र तिवारी ,ममता किरन ,वशिष्ठ अनूप ,एहतराम इस्लाम,कमलेश भट्ट कमल , जयकृष्ण राय तुषार ,कुँवर बेचैन ,आलोक श्रीवास्तव ,कुमार विनोद ,विज्ञान व्रत ,सुरेन्द्र सिघल ,चन्द्रसेन विराट ,तुफैल चतुर्वेदी ,लक्ष्मी शंकर बाजपेई ,सत्यप्रकाश शर्मा ,अखिलेश तिवारी ,विजय किशोर मानव ,हरिओम ,नूर मुहम्मद नूर कमलेश द्विवेदी दीक्षित दनकौरी ,दरवेश भारती आदि कवि शामिल हैं 

कुल दो सौ चालीस पृष्ठों का यह संकलन पठनीय और संग्रहणीय है | माधव कौशिक जी का यह प्रयास सराहनीय है | हिंदी ग़ज़ल के पाठकों के लिए साहित्य अकादेमी द्वारा दिया गया यह एक अनमोल तोहफ़ा है |


सम्पादकीय अंश -
कुल मिलाकर यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है की हिन्दी ग़ज़ल के सरोकार कविता की तरह युगीन यथार्थ तथा व्यवस्था -विरोध के साथ -साथ आज के समाज की दुर्दशा ,भ्रष्टाचार ,स्वार्थपरता तथा नैतिक मूल्यों के निरंतर गिरते जाने से उत्पन्न उहापोह के विवेचन तथा विश्लेषण से जुड़े हैं |सामाजिक विसंगतियों तथा विद्रूपताओं को अभिव्यक्त करते हुए व्यंग्य की धार अत्यंत तुर्श बनी रहती है |यह तुर्शी भरा तेवर ग़ज़ल का प्राणतत्व है |साफ़ -सुथरी आम बोलचाल की भाषा में लिखी जाने वाली इन गजलों में पूरा जीवन अपनी सम्पूर्णता तथा गरिमा के साथ चित्रित हुआ है |

एक ग़ज़ल  -कवि/ गज़लकार - माधव कौशिक 
कवि / सम्पादक -माधव कौशिक 
सम्पर्क -09888535393

बस एक काम यही बार -बार करता था 
भंवर के बीच से दरिया को पार करता था |

अजीब शख्स था ख़ुद अलविदा कहा लेकिन 
हर एक शाम मेरा इंतज़ार करता था |

उसी की पीठ पर उभरे निशान ज़ख्मों के 
जो हर लड़ाई में पीछे से वार करता था |

हवा ने छीन लिया अब तो धूप का जादू 
नहीं तो पेड़ भी पत्तों से प्यार करता था |

सुना है वक्त ने उसको बना दिया पत्थर 
जो रो वक्त को भी संगसार करता था |

पुस्तक का नाम -समकालीन हिंदी ग़ज़ल -संग्रह 
प्रकाशक -साहित्य अकादेमी 
सम्पादक एवं चयन -माधव कौशिक 
मूल्य -रु० एक सौ पचास 
पता -साहित्य अकादेमी 
रवीन्द्र भवन ,35 फ़िरोजशाह मार्ग ,नई दिल्ली -110001
विक्रय विभाग -स्वाति मन्दिर मार्ग ,नई दिल्ली -110001

Thursday 2 May 2013

मेरी शब्द यात्रा - रवीन्द्र कालिया

साहित्य समाज के पीछे लंगड़ाता हुआ चल रहा है -
                                                   रवीन्द्र कालिया 

साहित्यिक आयोजन

मेरे निर्माण और रचनाषीलता में इलाहाबाद का है अहम रोल:
 रवींद्र कालिया
हिंदी की सारी शब्द  यात्रा पर गौर करने का समय आ गया है:
 लाल बहादुर वर्मा

हिंदी विवि के इलाहाबाद केंद्र में आयोजित हुई मेरी शब्दयात्राश्रृंखला

श्री रवीन्द्र कालिया को पुष्प गुच्छ और शाल देकर सम्मानित करते समारोह के
अध्यक्ष प्रो० लाल बहादुर वर्मा और सबसे दायें श्री अजित पुष्कल 
      महात्मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र में दिनांक 27 अप्रैल 2013 को मेरी शब्द यात्रा श्रृंखला के तहत आयोजित तीसरे कार्यक्रम में वरिष्‍ठ साहित्यकार एवं ज्ञानोदय के संपादक श्री रवींद्र कालिया ने अपनी रचना प्रक्रिया को साझा करते हुए कहा कि अब साहित्‍य, समाज के आगे चलने वाली मशाल नहीं रही, अब वह समाज से बहुत ज्‍यादा पीछ रहकर लंगड़ाते हुए चल रहा है। कालिया जी अपनों से मुखातिब हुए तो फिर पूरी साफगोई से कल से आज तक का सफरनामा सुनाया। कहा, आज हिंदी का वर्चस्‍व बढ़ रहा है और इसका भविष्‍य उज्‍ज्‍वल है। आने वाले कल में लोग हिंदी के अच्‍छे स्‍कूलों के लिए भागेंगे। मेरा सौभाग्‍य है कि इसी हिंदी के सहारे मैंने पूरी दुनिया की सैर की। जहां तक लिखने के लिए समय निकालने की बात है तो मैंने जो कुछ भी लिखा, अपने व्यस्ततम क्षणों में ही लिखा। जितना ज्‍यादा व्‍यस्‍त रहा, उतना ही ज्‍यादा लिखा। अपने आसपास की जिंदगी को जितना अच्‍छा समझ सकेंगे, उतना ही अच्‍छा लिख सकेंगे। कई बार समय को जानने के लिए टीनएजर्स को समझना जरूरी है, उनकी ऊर्जा और सोच में समय का सच होता है।

कहानी पाठ करते रवीन्द्र कालिया सबसे बाएं चर्चित कथाकार ममता कालिया
कालिया जी के बाएं क्रमशः प्रो० लाल बहादुर वर्मा और प्रो० सन्तोष भदौरिया 

      मेरा मनना है कि जो बीत जाता है, उसे भुला देना बेहतर है, उसे खोजना अपना समय व्‍यर्थ करना है। लोग जड़ों के पीछे भागते हैं, मैं अपनी जड़े खोजने जालंधर गया, पर वहां इतना कुछ बदल चुका था कि बीते हुए कल के निशान तक नहीं मिले। मेरी स्‍मृतियों में इलाहाबाद आज भी जिंदा है, रानी मंडी को मैं आज भी महसूस करता हूं। मैं जब पहली बार इलाहाबाद पहुंचा था तो मेरी जेब में सिर्फ बीस रुपये थे और जानने वाले के नाम पर अश्‍क जी, जो उन दिनों शहर से बाहर थे। माना जाता था कि जिसे इलाहाबाद ने मान्‍यता दे दी, वह लेखक मान लिया जाता था। इसी शहर ने मुझे पर बांधना सिखाया और उड़ना भी। यहां सबसे ज्‍यादा कठिन लोग रहते हैं। यहां सबसे ज्‍यादा स्‍पीड ब्रेकर हैं, सड़कों पर और जिंदगी में भी। इस शहर में प्रतिरोध का स्‍वर है। हालांकि आज हम दोहरा चरित्र लेकर जीते हैं, ऐसा नहीं होता तो दिखने वाले प्रतिरोध के स्‍वर के बाद दिल्‍ली जैसी कोई घटना दोबारा नहीं होती। अब प्रतिरोध का शोकगीत लिखने का समय आ गया है। जरूरत है उन चेहरों के शिनाख्‍त की जो मुखौटे लगाकर प्रतिरोध करते हैं। साहित्‍यकार होने के नाते मैं भी शर्मिंदा हूं। जो साहित्‍य जिंदगी के बदलाव की तस्‍वीर पेश करता है, वही सच्‍चा साहित्‍य है। यदि हमारा साहित्‍य लेखन समाज को नहीं बदलता है तो वह झक मारने जैसा ही है। प्रेमचंद का लेखन जमीन से जुड़ा था, इसीलिए वह आज भी सबसे ज्‍यादा प्रासंगिक और पठनीय है। मेरी कोशिश रहेगी कि मैं अपने लेखन में समाज से ज्‍यादा जुड़ा रह सकूं।
      अतीत की स्‍मृतियों को सहेजते हुए उन्‍होंने हिंदी और लेखन से नाता जोड़ने की दिलचस्‍प दास्‍तां सुनाई। बोले, घर में आने वाले हिंदी के अखबार में बच्‍चों का कोना के लिए कोई रचना भेजी थी, तब मुझे सलीके से अपना नाम भी लिखना नहीं आता था। चंद्रकांता संतति जैसी कुछ किताबें लेकर पढ़ना शुरू किया। कुछ लेखकों के नाम समझ में आने लगे। जाना कि अश्‍क जी जालंधर के हैं तो एक परिचित के माध्‍यम से उनसे मिलना हुआ, साथ में मोहन राकेश भी थे। इस बीच एक बार बहुत हिम्‍मत करके अश्‍क जी का इंटरव्‍यु लेने पहुंचा तो उनका बड़प्‍पन कि उन्‍होंने मुझसे कागज लेकर उस पर सवाल और जवाब दोनों ही लिखकर दे दिए। उनका इंटरव्‍यु साप्‍ताहिक हिंदुस्तान में छपा। सिलसिला शुरू हुआ तो एक गोष्‍ठी में पहली कहानी पढ़ी। साप्‍ताहिक हिंदुस्‍तान और फिर आदर्श पत्रिका में कहानी छपी तो पहचान बनने लगी। परिणाम यह कि जालंधर आने पर एक दिन मोहन राकेश जी मुझे ढूंढते हुए घर तक आ पहुंचे। उन्‍होंने ही मुझे हिंदी से बीए आनर्स करने को कहा। हालांकि मेरी बहनों ने पालिटिकल साइंस में पढ़ाई की। शुरूआत में विरोध तो हुआ लेकिन बाद में सब ठीक होगा। कपूरथला के सरकारी कालेज में पहली नौकरी की। आरंभिक दौर में मेरी कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में जिस गति से जाती, उसी गति से लौट आती। बाद में वे सभी उन्‍हीं पत्रिकाओं में छपीं, जहां से लौटी थीं। आकाशवाणी में भी कार्यक्रम मिलने लगे जहां जगजीत सिंह जैसे दोस्‍त भी मिले। इससे पहले कालिया जी ने अपनी कहानी एक होम्योपैथिक कहानीका पाठ किया। बतौर अध्यक्ष लाल बहादुर वर्मा ने कहा कि, आज कालिया जी को सुनना जितना अच्‍छा लगा, अब से पहले कभी नहीं। यह इसलिए सुखद लगा क्‍योंकि शब्‍दों में अर्थ विलीन होता रहा, लेकिन आज जरूरत है कि समाज और साहित्‍य को लेकर उनकी चिंताएं साझा की जाएं। 

कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी प्रो. संतोष भदौरिया द्वारा किया गया। लाल बहादुर वर्मा एवं अजित पुश्कल ने शाल, पुष्‍पगुच्छ प्रदान कर साहित्यकार रवींद्र कालिया का स्वागत किया एवं धनन्जय चोपड़ा ने रवींद्र कालिया के जीवन वृत्त पर प्रकाश डाला। प्रो. ए.ए. फातमी ने अतिथियों का स्वागत किया।
            गोष्ठी में प्रमुख रूप से ममता कालिया, अजीत पुश्कल, ए.ए. फातमी, वरिष्ठ अधिवक्ता उमेश नारायण शर्मा ,स्थाई अधिवक्ता ए० पी० मिश्र ,असरफ अली बेग, अनीता गोपेश, दिनेश ग्रोवर, रमेश ग्रोवर, एहतराम इस्लाम, रविनंदन सिंह, अनिल रंजन भौमिक, अजय प्रकाश, विवेक सत्यांशु, नीलम शंकर, बद्रीनारायण, हरीशचन्द पाण्डेय, जयकृष्‍ण राय तुषार, नन्दल हितैषी, फखरूल करीम, जेपी मिश्रा, सुबोध शुक्ला, धनंजय चोपड़ा, अविनाश मिश्र, श्रीप्रकाश मिश्र, आमोद माहेश्‍वरी, फज़ले हसनैन, सुरेन्द्र राही, अमरेन्द्र सिंह सहित तमाम साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।

[रिपोर्ट अंश साभार अमर उजाला ब्यूरो इलाहाबाद ]

एक देशगान -मुखिया अपनी चुप्पी तोड़ो

एक गीत 
भारत का राष्ट्रीय ध्वज 

एक गीत -मुखिया अपनी चुप्पी तोड़ो  


मुखिया 
अपनी चुप्पी तोड़ो |
अब दुश्मन की 
बाँह मरोड़ो |

हिम्मत बढ़ती 
पाक- चीन की ,
तुम्हें नहीं 
चिंता जमीन की ,
भारत माँ के 
पुत्र करोड़ो |

रघुपति राघव 
अभी न गाओ .
संकट में है 
देश बचाओ ,
आंधी -तूफानों 
को मोड़ो |

हिन्दू ,मुस्लिम ,
सिक्खों जागो ,
देश एकता में 
फिर तागो ,
हर भारतवासी 
को जोड़ो |

उठो -उठो सिंहों 
ललकारो ,
अजगर को 
अब पंजे मारो ,
सिर को कुचलो 
ऑंखें फोड़ो |

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...