Saturday 6 April 2013

एक गीत -यह तो वही शहर है


चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -यह तो वही शहर है 
यह तो 
वही शहर है 
जिसमें गंगा बहती थी |
एक गुलाबी -
गंध हवा के 
संग -संग बहती थी |

पन्त ,निराला 
यहीं निराली 
भाषा गढ़ते थे ,
इसकी 
छाया में बच्चन 
मधुशाला पढ़ते थे ,
एक महादेवी 
कविता की 
इसमें रहती थी |

अब इसमें 
कुछ धूल भरे 
मौसम ही आते हैं ,
छन्दहीन 
विद्यापति 
बनकर गीत सुनाते हैं ,
उर्वर थी 
यह मिट्टी 
इतनी कभी न परती थी |

संगम है 
लेकिन धारा तो 
मलिन हो गयी है ,
इसकी 
लहरों की भाषा 
कुछ कठिन हो गयी है ,
यही शहर है 
जिसमें 
शाम कहानी कहती थी |

मंच-
विदूषक अब 
दरबारों के नवरत्न हुए ,
मंसबदारी 
हासिल 
करने के बस यत्न हुए ,
यही 
शहर है जहाँ 
कलम भी दुर्दिन सहती थी |

20 comments:

  1. अब इसमें
    कुछ धूल भरे
    मौसम ही आते हैं ,
    छन्दहीन
    विद्यापति
    बनकर गीत सुनाते हैं ,
    उर्वर थी
    यह मिट्टी
    इतनी कभी न परती थी |


    यथार्थ को कहता सुंदर गीत

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर......शहर और संस्कृति की बिगडती दशा पर अपना कोई जोर नहीं चलता...

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  3. बहुत खूबसूरती से आपने दर्द उकेरा है. बहुत प्यारी लगी यह कृति आपकी.

    ReplyDelete
  4. विडंबना यही

    ReplyDelete
  5. समय के इस मिटटी की रंग भी बदल गए..... या हमने बदल डाले

    ReplyDelete
  6. समय के साथ बदलते परिवेच को बाखूबी लिखा है ...

    ReplyDelete
  7. वाकई आज इलाहाबाद की यही व्यथा है ...बहुत सुन्दर..!!!

    ReplyDelete
  8. शहर को सही तरीके से याद किया है

    ReplyDelete
  9. इस गीत को अपना स्नेह देने हेतु आप सभी का आभार |

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (10-04-2013) के (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!
    साहित्य खजाना पर भो होगी .आप अपनी अनमोल समीक्षा मंच पर जरूर कीजिये , स्वागत है आपका मंच पर
    सूचनार्थ
    सादर

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (10-04-2013) के "साहित्य खजाना" (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
    सूचनार्थ...सादर!

    ReplyDelete
  12. बहुत सुंदर गीत sir
    मेरे मंच पर आपका स्वागत है
    गुज़ारिश : ''यादें याद आती हैं.....''

    ReplyDelete

  13. सुंदर,संगम नगरी का परिचय

    ReplyDelete
  14. जीवन के सुख दुःख को व्यक्त करती
    यथार्थ की जमीन से जुडी
    विचारपूर्ण भावुक रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    शुभकामनायें

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -ग़ज़ल ऐसी हो

  चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल - कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ  ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ  ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत ...