Sunday 28 April 2013

एक कविता 'सपने में शहर' -कवि अरुण आदित्य


कवि / कथाकार  -अरुण आदित्य
सम्पर्क -08392920836
एक कविता -सपने में शहर / कवि अरुण आदित्य 
सपने में शहर 
[चंडीगढ़ में बिताए दिनों की स्मृति में ]

पत्थरों का बगीचा देखता है स्वप्न 
कि वह सुख की झील बन जाए 
झील का स्वप्न है कि नदी बन बहती रहे 

नदी की लहरें सुर लहरियां बन जाना चाहती हैं 
सुर लहरियां थिरकते पांवों में तब्दील हो जाना चाहती हैं 

यहाँ जो लाल है 
वह हरा हो जाने कि उम्मीद में है 
जो हरा है ,वह चटख पीला हो जाना चाहता है 

फूल के मन में है तितली बन जाने का ख़्वाब 
तितली चाहती है हवा हो जाए 
हवा सोचती है वह क्या हो जाए ?

इस शहर में जो है 
वह जैसा है से कुछ और हो जाना चाहता है 
पर क्या यह इसी शहर की बात है ?



अरुण आदित्य चंडीगढ़ प्रवास के समय 
परिचय -अरुण आदित्य समकालीन हिंदी कविता के सजग और संवेदनशील कवि है | कवि होने के साथ ही एक बड़े उपन्यासकार और एक ईमानदार पत्रकार भी हैं |अरुण जी का जीवन विविधताओं से भरा है |उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद में 02-03-1965 को इनका जन्म हुआ था |लेकिन पत्रकारिता की शुरुआत इन्दौर से हुई ,काफी दिनों तक अमर उजाला के साहित्य सम्पादक भी रहे |इस समय इलाहाबाद में अमर उजाला के सम्पादक हैं |उत्तर वनवास इनका सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास है जिसकी तारीफ कई बार जाने -माने आलोचक नामवर सिंह भी कर चुके हैं |हमारे समय का यह महत्वपूर्ण उपन्यास है |इनका एक कविता संग्रह यह सब रोज नहीं होता प्रकाशित हो चुका है |स्वभाव से हंसमुख और विनम्र इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि की एक कविता हम आपके साथ साझा कर रहे हैं |आभार सहित |

Thursday 25 April 2013

एक देश गान -जाग रहा है हिन्दुस्तान


भारतीय राष्ट्रध्वज 


एक गीत -जाग रहा है हिन्दुस्तान 

हमें चीनियों 
मत दिखलाओ 
अपनी ताकत का अभिमान |
सन बासठ में 
सोया था जो 
जाग रहा है हिन्दुस्तान |

छेड़ो मत 
लद्दाख ,हिमालय 
छेड़ो मत कश्मीर हमारा ,
सवा लाख ते 
एक लड़ाऊँ ऐसा 
है  हर  वीर हमारा ,
युद्ध थोपते 
नहीं किसी पर 
हम करते सबका सम्मान |

सत्य ,अहिंसा 
दया ,धर्म की 
बातें हम अक्सर करते हैं ,
इसका मतलब 
यह मत समझो
हम हथियारों से डरते हैं ,
दुनिया भर को 
सिखलाया है 
हमने गणित और विज्ञान |

जल ,थल -
नभ की सीमाओं में 
नहीं कहीं हम डरने वाले ,
सवा अरब से 
भी जादा हम 
मातृभूमि पर मरने वाले ,
हम सब अपने 
शौर्य ,शक्ति का 
रोज नहीं करते गुणगान |

अगर अहिंसा 
फेल हो गई 
भगत सिंह की राह चलेंगे ,
छूटा गर 
ब्रह्मास्त्र हमारा 
दुनिया के सब शहर जलेंगे ,
नहीं झुका है 
नहीं झुकेगा 
सदियों तक यह हिन्दुस्तान |

Saturday 6 April 2013

एक गीत -यह तो वही शहर है


चित्र -गूगल से साभार 

एक गीत -यह तो वही शहर है 
यह तो 
वही शहर है 
जिसमें गंगा बहती थी |
एक गुलाबी -
गंध हवा के 
संग -संग बहती थी |

पन्त ,निराला 
यहीं निराली 
भाषा गढ़ते थे ,
इसकी 
छाया में बच्चन 
मधुशाला पढ़ते थे ,
एक महादेवी 
कविता की 
इसमें रहती थी |

अब इसमें 
कुछ धूल भरे 
मौसम ही आते हैं ,
छन्दहीन 
विद्यापति 
बनकर गीत सुनाते हैं ,
उर्वर थी 
यह मिट्टी 
इतनी कभी न परती थी |

संगम है 
लेकिन धारा तो 
मलिन हो गयी है ,
इसकी 
लहरों की भाषा 
कुछ कठिन हो गयी है ,
यही शहर है 
जिसमें 
शाम कहानी कहती थी |

मंच-
विदूषक अब 
दरबारों के नवरत्न हुए ,
मंसबदारी 
हासिल 
करने के बस यत्न हुए ,
यही 
शहर है जहाँ 
कलम भी दुर्दिन सहती थी |

Wednesday 3 April 2013

'अनभै साँचा 'हिंदी त्रैमासिक का समकालीन हिंदी ग़ज़ल विशेषांक -एक नज़र


हिंदी त्रैमासिक पत्रिका 'अनभै साँचा 'का ग़ज़ल विशेषांक -एक नज़र 


साहित्य और संस्कृति की त्रैमासिक पत्रिका अनभै साँचा कल डाक से मिली सुखद अनुभूति हुई |यह पत्रिका का उनतीसवां अंक है ,जो समकालीन हिन्दी ग़ज़ल विशेषांक है |यह विशेषांक भी नया ज्ञानोदय की तर्ज [हाल ही में प्रकाशित ग़ज़ल महाविशेषांक ] पर नये -पुराने ग़ज़लकारों की गजलों से सजा एक संग्रहणीय अंक बन पड़ा है |पत्रिका में मेरी दो पुरानी ग़ज़लें सम्पादक द्वारा कहीं से प्राप्त कर प्रकाशित कर दी गयीं हैं ,पता में मामूली त्रुटि भी है |लेकिन पढ़कर अच्छा लगा इस पत्रिका के परामर्श दाता जाने -माने कवि डॉ 0 केदारनाथ सिंह और विश्वनाथ त्रिपाठी जी हैं |अंक का विशेष सम्पादन ज्ञानप्रकाश विवेक  ने किया है |सम्पादन सहयोग अनामिका ,जगमोहन राय ,विक्रम सिंह ,हरियश राय ,बली सिंह ,मनोज सिंह और ऋचा का है |पत्रिका के सम्पादक द्वारिका प्रसाद चारुमित्र हैं |यह पत्रिका खुबसूरत कवर से सजी कुल एक सौ बयानबे पृष्ठ की है |पत्रिका को सम्पादकीय के अतिरिक्त कुल तीन खण्डों में विभाजित किया गया है |प्रथम खण्ड में आलेख के अन्तर्गत शलभ श्रीराम सिंह ,डॉ मधुकर खराटे ,महेश अश्क और सुल्तान अहमद के आलेख हैं |विशेष सम्पादकीय में ज्ञानप्रकाश विवेक की कलम से जो कुछ उचित समझा गया है लिखा गया है |छन्द विधा में गीत हो या ग़ज़ल आलेख कहीं न कहीं मित्रों दोस्तों तक सिमट जाते हैं |इस सन्दर्भ में लेखकों को कुछ और ईमानदार होने की आवश्यकता है | हमारी विरासत के अन्तर्गत अमीर खुसरो ,कबीर ,प्यारेलाल शोकी ,किशोरीलाल 'प्रेमघन 'स्वामी रामतीर्थ 'सनेही ',मैथिलीशरण गुप्त ,जयशंकर प्रसाद ,निराला ,भारतेन्दु हरिश्चंद्र और शमशेर बहादुर सिंह की ग़ज़लें शामिल हैं |समकालीन ग़ज़लें शीर्षक के अन्तर्गत दुष्यन्त कुमार से लेकर कुल 78 शायर शामिल किये गए हैं |  चारुमित्र जी के सम्पादन में एक उत्कृष्ट पत्रिका निकल रही है और यह अंक तो विशेष रूप से सराहनीय है |

पत्रिका का नाम -अनभै साँचा 
सम्पादक -द्वारिका प्रसाद चारुमित्र 
अंक -समकालीन हिंदी ग़ज़ल विशेषांक 
मूल्य -साठ रूपये 
सम्पादकीय पता -
148,कादंबरी ,सेक्टर -9,रोहिणी ,दिल्ली -110085
mob.no.09811535148

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...