राजा
करता वही
उसे जो भाता है |
कवि
कविता लिखता
जनगीत न गाता है |
कविता लिखता
जनगीत न गाता है |
राजधर्म के
सब दरवाजे
बन्द मिले ,
सरहद के
भीतर कसाब -
जयचन्द मिले ,
बन्दी
पृथ्वीराज
सिर्फ़ पछताता है |
गोदामों
के बाहर
गेहूँ सड़ता है ,
नेता
रोज तिलस्मी
भाषण पढ़ता है ,
कर्ज
चुकाने में
किसान मर जाता है |
उनकी
दूरंतो
अपनी नौचन्दी है ,
संसद से
मत सच
कहना पाबन्दी है ,
संविधान
बस अपना
भाग्यविधाता है |
पौरुष है
लड़ने का पर
हथियार नहीं है ,
सिर पर
पगड़ीवाला
अब सरदार नहीं है ,
मुल्क
हमारा रब ही
सिर्फ़ चलाता है |
[मेरी यह कविता आज [31-03-2012 ] अमर उजाला काम्पैक्ट में प्रकाशित है सिर्फ़ इलाहाबाद संस्करण के आलावा|साभार अमर उजाला | ]
[मेरी यह कविता आज [31-03-2012 ] अमर उजाला काम्पैक्ट में प्रकाशित है सिर्फ़ इलाहाबाद संस्करण के आलावा|साभार अमर उजाला | ]