Wednesday 19 December 2012

एक गीत -स्याह चांदनी चौक हो गया

चित्र -गूगल से साभार 
क कविता -स्याह चांदनी चौक हो गया 
[यह सिर्फ़ एक कविता नहीं जनाक्रोश है ]
यमुना में 
गर चुल्लू भर 
पानी हो दिल्ली डूब मरो |
स्याह 
चाँदनी चौक हो गया 
नादिरशाहों तनिक डरो |

नहीं राजधानी के 
लायक 
चीरहरण करती है दिल्ली ,
भारत माँ 
की छवि दुनिया में 
शर्मसार करती है दिल्ली ,
संविधान की 
क़समें 
खाने वालों कुछ तो अब सुधरो |

तालिबान में ,
तुझमें क्या है 
फ़र्क सोचकर हमें बताओ ,
जो भी 
गुनहगार हैं उनको 
फांसी के तख्ते तक लाओ ,
दुनिया को 
क्या मुंह 
दिखलाओगे नामर्दों शर्म करो |

क्रांति करो 
अब अत्याचारी 
महलों की दीवार ढहा दो ,
कठपुतली 
परधान देश का 
उसको मौला राह दिखा दो ,
भ्रष्टाचारी 
हाकिम दिन भर 
गाल बजाते उन्हें धरो |

गोरख पांडे का 
अनुयायी 
चुप क्यों है मजनू का टीला ,
आसमान की 
झुकी निगाहें 
हुआ शर्म से चेहरा पीला ,
इस समाज 
का चेहरा बदलो 
नुक्कड़ नाटक बन्द करो |

गद्दी का 
गुनाह है इतना 
उस पर बैठी बूढी अम्मा ,
दु:शासन हो 
गया प्रशासन 
पुलिस तन्त्र हो गया निकम्मा ,
कुर्सी 
बची रहेगी केवल 
इटली का गुणगान करो |

9 comments:

  1. आपने जनाक्रोश को इस तरह गीतबद्ध कर उसे और प्रभावी वा मार्मिक बना दिया .यही गीत व गीतकार की सफलता है .

    ReplyDelete
  2. बेहद सार्थक और सशक्त रचना...

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  3. बहुत सटीक और सार्थक आक्रोश...

    ReplyDelete
  4. आक्रोश गीत में ढलकर और भी प्रभावी हो गया है!

    ReplyDelete
  5. दिल्ली ने क्या क्या झेला है।

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (21-12-2012) के चर्चा मंच-११०० (कल हो न हो..) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

    ReplyDelete
  7. Karna to ab jantane chahiye...jabtak ham qanoon me badlaaw nahee late,kuchh nahee hoga....police gunahgaron ko pakad bhee le,case darj bhee ho to hamaree ghisipiti nyaywyawstha mujrimon ko saza nahee detee.

    ReplyDelete
  8. आक्रोश के सार्थक स्वर उठाती एक क्रांतिकारी रचना...बहुत खूब!

    ReplyDelete
  9. Tushaar bhai aapse apekshit kavita! Aapko pahale bhee patra patrikaon mein pada hai par yeh rang aaj dekha hai. Abhaar. - kamal jeet Choudhary ( j and k )

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...