Friday 21 December 2012

एक गीत नववर्ष के आगमन पर -खूंटियों पर टंगे कैलेण्डर नये हैं

चित्र -गूगल से साभार 
नया वर्ष शांति और समृद्धि लाए  ,भ्रष्टाचार और अत्याचार मिटाए |
मित्रों इस गीत के बाद मुझे गाँव जाना है |मेरी वापसी दो या तीन जनवरी को होगी ,तब तक मैं अंतर्जाल से दूर रहूँगा |आशा है आप अपना स्नेह बनाए रहेंगे |आप सभी के लिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नववर्ष मंगलमय हो |
एक गीत -खूंटियों पर टंगे कैलेण्डर नये हैं 
दुधमुंहा 
दिनमान पूरब के 
क्षितिज से आ रहा है |
नया संवत्सर 
उम्मीदों की 
प्रभाती गा रहा है |

डायरी के 
गीत बासी हुए 
उनको छोड़ना है ,
अब नई 
पगडंडियों की 
ओर रुख को मोड़ना है ,
एक अंतर्द्वंद 
मन को 
आज भी भटका रहा है |

फिर हवा में 
फूल महकें 
धूप में आवारगी हो ,
पर्व -उत्सव 
के सुदिन लौटें 
मिलन में सादगी हो ,
नया मौसम 
नई तारीखें 
नशा सा छा रहा है |

गर्द ओढ़े 
खूटियों पर 
टंगे कैलेण्डर नये हैं ,
विदा लेकर 
अनमने से 
कुछ पुराने दिन गये हैं ,
तितलियों के 
पंख फूलों से 
कोई सहला रहा है |

फिर समय की 
सीढियों पर 
हो कबीरा की लुकाठी ,
मस्जिदों में 
हों अजानें ,
मंदिरों में वेदपाठी ,
चर्च 
गुरुद्वारों में 
कोई संत वाणी गा रहा है |
संगम इलाहाबाद -चित्र गूगल से साभार 

Wednesday 19 December 2012

एक गीत -स्याह चांदनी चौक हो गया

चित्र -गूगल से साभार 
क कविता -स्याह चांदनी चौक हो गया 
[यह सिर्फ़ एक कविता नहीं जनाक्रोश है ]
यमुना में 
गर चुल्लू भर 
पानी हो दिल्ली डूब मरो |
स्याह 
चाँदनी चौक हो गया 
नादिरशाहों तनिक डरो |

नहीं राजधानी के 
लायक 
चीरहरण करती है दिल्ली ,
भारत माँ 
की छवि दुनिया में 
शर्मसार करती है दिल्ली ,
संविधान की 
क़समें 
खाने वालों कुछ तो अब सुधरो |

तालिबान में ,
तुझमें क्या है 
फ़र्क सोचकर हमें बताओ ,
जो भी 
गुनहगार हैं उनको 
फांसी के तख्ते तक लाओ ,
दुनिया को 
क्या मुंह 
दिखलाओगे नामर्दों शर्म करो |

क्रांति करो 
अब अत्याचारी 
महलों की दीवार ढहा दो ,
कठपुतली 
परधान देश का 
उसको मौला राह दिखा दो ,
भ्रष्टाचारी 
हाकिम दिन भर 
गाल बजाते उन्हें धरो |

गोरख पांडे का 
अनुयायी 
चुप क्यों है मजनू का टीला ,
आसमान की 
झुकी निगाहें 
हुआ शर्म से चेहरा पीला ,
इस समाज 
का चेहरा बदलो 
नुक्कड़ नाटक बन्द करो |

गद्दी का 
गुनाह है इतना 
उस पर बैठी बूढी अम्मा ,
दु:शासन हो 
गया प्रशासन 
पुलिस तन्त्र हो गया निकम्मा ,
कुर्सी 
बची रहेगी केवल 
इटली का गुणगान करो |

Tuesday 18 December 2012

एक गीत -सूरज लगा सोने पहाड़ों में

चित्र गूगल से साभार 
एक गीत -सुबह अब देर तक सूरज लगा सोने पहाड़ों में 
सुबह अब 
देर  तक सूरज 
लगा सोने पहाड़ों में |
हमें भी 
आलसी, मौसम 
बना देता है जाड़ों में |

गुलाबी होंठ 
हाथों में 
लिए काफी जगाते हैं ,
लिहाफों में 
हम बच्चों की 
तरह ही कुनमुनाते हैं ,
न चढ़ती है 
न खुलती 
सिटकिनी ऊँचे किवाड़ों में |

कुहासे में 
परिंदे राह 
मीलों तक भटक जाते ,
कभी गिरकर के 
पेड़ों की 
टहनियों में अटक जाते ,
कोई कुश्ती में 
धोबी पाट 
दिखलाता अखाड़ों में |

नदी में 
चोंच से
लड़ते हुए पंछी लगे तिरने ,
गगन में 
सूर्य के घोड़े 
कुहासे में लगे घिरने ,
हवा का 
शाल पश्मीना 
चिपक जाता है ताड़ों में |

किसी को भी 
बुलाओ तो 
नहीं अब सुन रहा कोई ,
नया आलू 
अंगीठी में 
पलटकर भुन रहा कोई ,
खनक 
वैसी नहीं अब 
रात में बजते नगाड़ों में |

Thursday 13 December 2012

एक गीत -शायद मुझसे ही मिलना था

चित्र -गूगल से साभार 
एक गीत -शायद मुझसे ही मिलना था  
बहुत दिनों से 
गायब कोई पंछी 
ताल नहाने आया |
चोंच लड़ाकर 
गीत सुनाकर 
फिर -फिर हमें रिझाने आया |

बरसों से 
सूखी टहनी पर 
फूल खिले ,लौटी हरियाली ,
ये उदास 
सुबहें फिर खनकीं 
लगी पहनने झुमके ,बाली ,
शायद मुझसे 
ही मिलना था 
लेकिन किसी बहाने आया |

धूल फांकती 
खुली खिड़कियाँ 
नये -नये कैलेण्डर आये ,
देवदास के 
पागल मन को 
केवल पारो की छवि भाये ,
होठों में 
उँगलियाँ फंसाकर 
सीटी मौन बजाने आया |

सर्द हुए 
रिश्तों में खुशबू  लौटी 
फिर गरमाहट आई ,
अलबम खुले 
और चित्रों को 
दबे पांव की आहट भाई ,
कोई पथराई 
आँखों को 
फिर से ख़्वाब दिखाने आया |

दुःख तो 
बस तेरे हिस्से का 
सबको साथी गीत सुनाना ,
कोरे पन्नों 
पर लिख देना 
प्यार -मोहब्बत का अफ़साना ,
मैं तो रूठ गया था 
ख़ुद से 
मुझको कौन मनाने आया |
चित्र -गूगल से साभार 

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...