Saturday 28 July 2012

ओ प्रवासी ! लौट आ सावन बुलाता है

चित्र -गूगल से साभार 
ओ प्रवासी !लौट आ सावन बुलाता है -एक गीत 
ओ प्रवासी !
लौट आ 
सावन बुलाता है |
हाथ में 
मेंहदी लगा 
कंगन बुलाता है |

क्या नहीं 
तेरे चमकते शहर 
स्वप्निल गांव में ,
मदभरी 
बहती हवाएं 
गुलमोहर की छावं में ,
हर गली 
कचनार का 
यौवन बुलाता है |

तुमने 
सलोनी साँझ के 
सपने नहीं देखे ,
नीलकंठी 
मोर के 
पखने नहीं देखे ,
ओ गगन के 
मेघ मेरा 
मन बुलाता है |

रेशमी 
जूड़े गुँथी 
कलियाँ महकती हैं ,
चन्द्रवदना 
बिजलियाँ 
नभ में चमकती हैं ,
झूलता 
सपनों भरा 
आंगन बुलाता है |

तुझ बिना 
बिन्दिया न 
माथे पर लगाऊँगी ,
कजलियों 
के गीत 
होठों पर न लाऊंगी ,
आ तुम्हें 
यह नेह का 
दरपन बुलाता है |
चित्र -गूगल से साभार 
[यह मेरा प्रारम्भिक दौर का गीत है जो 1 अगस्त 1993 को आज हिन्दी दैनिक के साप्ताहिक में प्रकाशित हुआ था ]

15 comments:

  1. तुमने
    सलोनी साँझ के
    सपने नहीं देखे ,
    नीलकंठी
    मोर के
    पखने नहीं देखे ,
    ओ गगन के
    मेघ मेरा
    मन बुलाता है |

    बहुत सुन्दर भाव इस नवगीत में

    ReplyDelete
  2. वाह, श्रिंगार पसरा पड़ा है इन लाईनों में

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  3. सुन्दर....अति सुन्दर...

    सादर
    अनु

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  4. आ तुम्हें
    यह नेह का
    दरपन बुलाता है |


    वाह, बहुत सुन्दर सावनी गीत...मन को छू लेने वाला...

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  5. भाई , आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए पहले तो क्षमा चाहता हूँ. कुछ ऐसी व्यस्तताएं रहीं के मुझे ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़ा...अब इस हर्जाने की भरपाई आपकी सभी पुरानी रचनाएँ पढ़ कर करूँगा....कमेन्ट भले सब पर न कर पाऊं लेकिन पढूंगा जरूर

    रेशमी
    जूड़े गुँथी
    कलियाँ महकती हैं ,
    चन्द्रवदना
    बिजलियाँ
    नभ में चमकती हैं ,
    झूलता
    सपनों भरा
    आंगन बुलाता है |


    वाह...लाजवाब रचना...सावन का किस सुन्दरता से आपने बखान किया है...अप्रतिम...

    नीरज

    ReplyDelete
  6. भाई , आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए पहले तो क्षमा चाहता हूँ. कुछ ऐसी व्यस्तताएं रहीं के मुझे ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़ा...अब इस हर्जाने की भरपाई आपकी सभी पुरानी रचनाएँ पढ़ कर करूँगा....कमेन्ट भले सब पर न कर पाऊं लेकिन पढूंगा जरूर

    रेशमी
    जूड़े गुँथी
    कलियाँ महकती हैं ,
    चन्द्रवदना
    बिजलियाँ
    नभ में चमकती हैं ,
    झूलता
    सपनों भरा
    आंगन बुलाता है |


    वाह...लाजवाब रचना...सावन का किस सुन्दरता से आपने बखान किया है...अप्रतिम...

    नीरज

    ReplyDelete
  7. सावन के झूले पड़े...तुम चले आओ..

    ReplyDelete
  8. सुन्दर संग्रह.

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  9. रेशमी
    जूड़े गुँथी
    कलियाँ महकती हैं ,
    चन्द्रवदना
    बिजलियाँ
    नभ में चमकती हैं ,
    झूलता
    सपनों भरा
    आंगन बुलाता है

    सावन को साकार करता सुंदर गीत।

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  10. उम्दा नवगीत, आभार !

    ReplyDelete
  11. तुझ बिना
    बिन्दिया न
    माथे पर लगाऊँगी ,
    कजलियों
    के गीत
    होठों पर न लाऊंगी ,
    आ तुम्हें
    यह नेह का
    दरपन बुलाता है |

    ________________________________

    प्रेम की अभिव्यक्ति किसी भी तरह हो अच्छी ही लगती है।

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