Friday 3 February 2012

एक गज़ल -किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए

चित्र -गूगल से साभार 
किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए 
तुझे जलती हुई लौ ,मुझको परवाना लिखा जाए 
ये दिल कहता है इक अच्छा सा अफ़साना लिखा जाए .


तेरी तस्वीर मेरे मुल्क हर जानिब से है अच्छी 
तुझे कश्मीर ,शिमला या कि हरियाना लिखा जाए .


अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं ,न दर्शक हैं 
गज़ल किसके लिए ,किसके लिए गाना लिखा जाए .


जो शायर मुफ़लिसों की तंग गलियों से नहीं गुजरा 
वो कहता है गज़ल में जाम -ओ -पैमाना लिखा जाए .


ये दरिया ,झील ,पर्वत ,वादियों को छोड़कर आओ 
किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए .


मुझे बदनामियों का डर है ,तुमसे कुछ नहीं कहता 
शहर को छोडकर जाऊँ तो दीवाना लिखा जाए .


बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में 
किसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए .


बदलते दौर में शहजादियों का जिक्र मत करना 
किसी मजदूर की बेटी को  सुल्ताना लिखा जाए .


शहर का हाल अब अच्छा नहीं लगता हमें यारों 
अब अपनी डायरी में कुछ तो रोजाना लिखा जाए .
चित्र -गूगल से साभार 

14 comments:

  1. ये दरिया ,झील ,पर्वत ,वादियों को छोड़कर आओ
    किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए .


    मुझे बदनामियों का डर है ,तुमसे कुछ नहीं कहता
    शहर को छोडकर जाऊँ तो दीवाना लिखा जाए .
    Kya baat hai!

    ReplyDelete
  2. अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं ,न दर्शक हैं
    गज़ल किसके लिए ,किसके लिए गाना लिखा जाए .

    ये दरिया ,झील ,पर्वत ,वादियों को छोड़कर आओ
    किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए .

    बदलते दौर में शहजादियों का जिक्र मत करना
    किसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए .

    भाई कमाल के अशआर पिरोये हैं आपने इस बेहद खूबसूरत ग़ज़ल में...सुभान अल्लाह...मेरी ढेरों दाद कबूल फरमाएं...

    नीरज

    ReplyDelete
  3. वाह वाह!!!!
    बेहद खूबसूरत गज़ल...
    बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में
    किसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए .

    ये तो लाजवाब!!
    सादर.

    ReplyDelete
  4. मुझे बदनामियों का डर है ,तुमसे कुछ नहीं कहता
    शहर को छोडकर जाऊँ तो दीवाना लिखा जाए

    क्या बात है...बहुत खूब सर!

    सादर

    ReplyDelete
  5. जैसे भी हो, प्रयास कर ऐसा ही फसाना लिखा जाये..

    ReplyDelete
  6. बदलते दौर में शहजादियों का जिक्र मत करना
    किसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए .

    zindabad sahab zindabad

    ReplyDelete
  7. तुझे जलती हुई लौ ,मुझको परवाना लिखा जाए
    ये दिल कहता है इक अच्छा सा अफ़साना लिखा जाए .

    ....bahut hi best gajal ...:)

    ReplyDelete
  8. बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में
    किसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए .

    सच के बारे में बिल्कुल सच लिखा है आपने।
    यथार्थपरक अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  9. अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं ,न दर्शक हैं
    गज़ल किसके लिए ,किसके लिए गाना लिखा जाए..

    बहुत ही लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... आज की हकीकत को बहुत ही तल्खी से बयान किया है ...

    ReplyDelete
  10. बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में
    किसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए .

    ...बहुत खूब! बहुत ख़ूबसूरत गज़ल ...

    ReplyDelete
  11. किसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए

    ____________________

    यही सबसे ज्यादा जरूरी है

    ReplyDelete
  12. आपकी गज़लें लाजवाब होतीं हैं...अनुभवों को शब्द देना दुरूह कार्य है...बहुत खूब...

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -ग़ज़ल ऐसी हो

  चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल - कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ  ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ  ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत ...