मेरी बेटी -सौम्या राय |
बेटियाँ तो भोर की
पहली किरन सी हैं |
ये कभी थकती नहीं
नन्हें हिरन सी हैं |
जिन्दगी में पर्व ये
त्यौहार लाती हैं ,
सुर्ख रँगोली बनाकर
गीत गाती हैं ,
यज्ञ की वेदी यही
पूजा- हवन सी हैं |
हँस पड़ें तो फूल
रो दें झील होती हैं ,
ये अँधेरी रात में
कंदील होती हैं ,
ये जमीनों ,आसमानों
के मिलन सी हैं |
जब तलक होतीं
पिता का घर सजातीं हैं ,
ये समय पे धूप
घर में छाँव लती हैं ,
ये तपन में ग्रीष्म की
शीतल पवन सी हैं |