Wednesday 31 August 2011

मेरी एक गज़ल

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
चल के काँटों में लिखें आज कोई ताज़ा गज़ल

हमसफ़र है वो ,मगर दोस्त के किरदार में है 
पर ज़माने को यकीं है वो मेरे प्यार में है 

चल के काँटों में लिखें आज कोई ताज़ा गज़ल 
फूल का ज़िक्र तो मेरे सभी अशआर में है 

उससे मैं किस तरह अपने गम -ए -हालात कहूँ 
आज वो खुश है बहुत दावत -ए -इफ़्तार में है 

डूबना है तो चलो गहरे समन्दर में चलें 
देख लें हौसला कितना मेरी पतवार में है 

ऐ हरे पेड़ जरा सीख ले झुकने का हुनर 
आज तूफान बहुत तेज है ,रफ़्तार में है 

मेरी मुश्किल है नहीं वक्त के साँचे में ढला 
ढल के पत्थर जो खिलौना हुआ बाज़ार में है 

बाढ़ में बर्फ़ सा गल जायेगा ये तेरा मंका 
सिर्फ़ चूने का ही पत्थर दर -ओ -दीवार में है 
चित्र -गूगल से साभार 

19 comments:

  1. मेरी मुश्किल है नहीं वक्त के साँचे में ढला
    ढल के पत्थर जो खिलौना हुआ बाज़ार में है
    हर शेर लाजवाब है राय साहब , बयां करता है तबियत से लिखा है जिगर -ए- ज़ार से ...../ बमुश्किल मिलते हैं ....शुक्रिया जी /

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  2. मेरी मुश्किल है नहीं वक्त के साँचे में ढला
    ढल के पत्थर जो खिलौना हुआ बाज़ार में है

    क्या कह गए हैं आप| वाह वाह वाह|

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  3. गज़ब की प्रभावी अभिव्यक्ति।

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  4. चल के काँटों में लिखें आज कोई ताज़ा गज़ल
    फूल का ज़िक्र तो मेरे सभी अशआर में है
    Bahut hee sundar!

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  5. मेरी मुश्किल है नहीं वक्त के साँचे में ढला
    ढल के पत्थर जो खिलौना हुआ बाज़ार में है

    वाह वाह वाह
    तुषार जी मतले से मक्ता तक हर एक शेर बार बार दिल से दाद दाद देने को मजबूर कर देता है

    जिंदाबाद

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  6. ढल के पत्थर जो खिलौना हुआ बाज़ार में है
    बहुत खूब ...पूरी गज़ल अपने में एक समग्र प्रभाव तो रखे ही हुए हैं एक एक शेर/अशआर खुद में बलंदी का अहसास कराते हैं !

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  7. खूबसूरत ग़ज़ल...
    "मेरी मुश्किल है नहीं वक्त के साँचे में ढला
    ढल के पत्थर जो खिलौना हुआ बाज़ार में है "
    ...

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  8. सुन्दर प्रस्तुति,गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें .

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  9. डूबना है तो चलो गहरे समन्दर में चलें
    देख लें हौसला कितना मेरी पतवार में है
    waah, kya baat hai

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  10. चल के काँटों में लिखें आज कोई ताज़ा गज़ल
    फूल का ज़िक्र तो मेरे सभी अशआर में है.

    प्रभावी अभिव्यक्ति .......

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  11. मेरी मुश्किल है नहीं वक्त के साँचे में ढला
    ढल के पत्थर जो खिलौना हुआ बाज़ार में है

    बहुत खूब.... बेहतरीन ग़ज़ल

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  12. चल के काँटों में लिखें आज कोई ताज़ा गज़ल
    फूल का ज़िक्र तो मेरे सभी अशआर में है
    अद्भुत!
    फूल का ज़िक्र तो मेरे सभी अशआर में है ... कितनी सहजता से आप गहरी बात कह जाते हैं।

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  13. santosh chaturvedi3 September 2011 at 08:46

    meri mushkil hai nahi waqt ke sanche me dhala. dhal ke patthar, dhal ke patthar jo khilauna huaa bajar men hai. lajavab sher ke liye badhaee.

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  14. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार ग़ज़ल !
    आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  15. चल के काँटों में लिखें आज कोई ताज़ा गज़ल
    फूल का ज़िक्र तो मेरे सभी अशआर में है

    क्या बात है, तुषार जी..
    बहुत बढ़िया ग़ज़ल।

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  16. ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  17. बहुत खूब ... बहुत उम्दा गज़ल है ...

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