Tuesday 23 August 2011

एकगज़ल-परिंदे तैरते हैं जो

चित्र -गूगल से साभार 
परिन्दे तैरते हैं जो, नदी -झीलों में होते हैं 
कहाँ बादल के टुकड़े रेत के टीलों में होते हैं 

सफ़र में दूरियां अब तो सिमट जाती हैं लम्हों में 
दिलों के फासले लेकिन कई मीलों में होते हैं 

जरा सा वक्त है बैठो मेरे अशआर तो सुन लो 
मोहब्बत के फ़साने तो कई रीलों में होते हैं 

ये गमले, बोनसाई छोड़कर आओ तो दिखलायें 
कमल के फूल कितने रंग के झीलों में होते हैं 

शहर से दूर लम्बी छुट्टियों के बीच तनहा हम 
हरे पेड़ों ,तितलियों और अबाबीलों में होते हैं 

हम इक  मजदूर हैं प्यासे ,हमें पानी नहीं मिलता 
हमारी प्यास के चर्चे तो तहसीलों में होते हैं 

कहानी में ही बस राजा गरीबों से मिला करते  
हकीकत में तो केवल राम ही भीलों में होते है 

खण्डहरों का भी एक माज़ी  इन्हें नफ़रत से मत देखो
तिलस्मी तख़्त -सिंहासन इन्ही टीलों में होते हैं  
चित्र -गूगल से साभार 

22 comments:

  1. ये गमले, बोनसाई छोड़कर आओ तो दिखलायें
    कमल के फूल कितने रंग के झीलों में होते हैं

    बहुत सुंदर ग़ज़ल.....

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  2. खूबसूरत ग़ज़ल...

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  3. कहानी में ही बस राजा गरीबों से मिला करता
    हकीकत में तो केवल राम ही भीलों में होते है
    लाजवाब बिम्ब!

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  4. हम एक मजदूर हैं प्यासे ,हमें पानी नहीं मिलता
    हमारी प्यास के चर्चे तो तहसीलों में होते हैं

    वाह
    इस एक शेर ने मन से पता नहीं क्या खींच लिया
    जितनी तारीफ़ करून कम है
    आपने एक वर्ग विशेष का दर्द सदा बयानी के साथ जिस खूबसूरती से प्रस्तुत किया है, कम ही देखने, सुनने, पढ़ने को मिलता है

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  5. सुन्दर बिम्ब में बहुत सुन्दर गजल.

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  6. santosh chaturvedi24 August 2011 at 08:05

    क्या बात है तुषार जी, बेहतर गजल लिखी है-
    हम मजदूर हैं प्यासे हमें पानी नहीं मिलता
    हमारी प्यास के चर्चे तो तहसीलों में होते हैं.
    बहुत खूब, बधाई स्वीकार करें.
    santosh chaturvedi.

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  7. खण्डहरों का भी एक माज़ी इन्हें नफ़रत से मत देखो
    तिलस्मी तख़्त -सिंहासन इन्ही टीलों में होते हैं
    दाद देते हैं आपके जज्ब्बातों को , विचार प्रवाह को ,सम्यक सुविचारों को प्रकट करने काअनोखा अंदाज .... प्रभावित करता है ...../ शुभकामनायें जी/

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  8. बहुत खुबसूरत और उम्दा गजल ..

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  9. जरा सा वक्त है बैठो मेरे अशआर तो सुन लो
    मोहब्बत के फ़साने तो कई रीलों में होते हैं

    Excellent ghazal !

    .

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  10. jara sa vakt hai baitho, mere ashrar to sun lo. kya baat hai.

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  11. सफ़र में दूरियां अब तो सिमट जाती हैं लम्हों में
    दिलों के फासले लेकिन कई मीलों में होते हैं ...

    सच है ... लाजवाब और गज़ब का शेर है ... दिलों की दूरियां नहीं मिट पाती ... लाजवाब गज़ल ..

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  12. सफ़र में दूरियां अब तो सिमट जाती हैं लम्हों में,
    दिलों के फासले लेकिन कई मीलों में होते हैं .

    लाजवाब लाजवाब लाजवाब.
    बहुत सुंदर ग़ज़ल.

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  13. प्रिय बंधुवर जयकृष्ण राय तुषार जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    आपकी ख़ूबसूरत ग़ज़ल दो दिन में कई बार पढ़ चुका हूं -
    ये गमले, बोनसाई छोड़कर आओ तो दिखलायें
    कमल के फूल कितने रंग के झीलों में होते हैं

    वाकई बेहतरीन ग़ज़ल , …एक एक शे'र पर फ़िदा हूं
    आप सच में नवगीत , गीत ,और ग़ज़लें बहुत परिपक्व लय में लिखते हैं …


    # मेरी ताज़ा पोस्ट पर आपका भी इंतज़ार है ,

    काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
    मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है

    वोट से मेरे ही पुश्तें इसकी पलती हैं मगर
    मुझपे ही गुर्राए … हद दर्ज़े का ये गद्दार है

    मेरी ख़िदमत के लिए मैंने बनाया ख़ुद इसे
    घर का जबरन् बन गया मालिक ; ये चौकीदार है

    पूरी रचना के लिए मेरे ब्लॉग पर पधारें … आपकी प्रतीक्षा रहेगी :)

    विलंब से ही सही…
    ♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  14. हमारी प्यास के "बस" चर्चे तो तहसीलों में होते हैं!
    एक उम्दा रचना

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  15. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल, तहसीलों और भीलों वाले काफ़ियों का चयन और उन काफ़ियों से तालमेल बिठाता अप्रतिम कथन इस ग़ज़ल को एक यादगार ग़ज़ल बनाने में समर्थ है

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  16. सफ़र में दूरियां अब तो सिमट जाती हैं लम्हों में
    दिलों के फासले लेकिन कई मीलों में होते हैं

    क्या बात कही है, तुषार जी।
    बहुत बढ़िया, बहुत सुंदर।
    बधाई।

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  17. ye hui n kuch baat...subhanallah !

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  18. ये गमले, बोनसाई छोड़कर आओ तो दिखलायें
    कमल के फूल कितने रंग के झीलों में होते हैं
    शहर से दूर लम्बी छुट्टियों के बीच तनहा हम
    हरे पेड़ों ,तितलियों और अबाबीलों में होते हैं


    बहुत सुंदर... और एहसास से भरपूर ...
    शुभकामनाएँ!

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  19. आप सभी का विशेष आभार मेरी इस गज़ल को पढ़ने के लिए |

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  20. आप सभी का विशेष आभार मेरी इस गज़ल को पढ़ने के लिए |

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  21. शहर से दूर लम्बी छुट्टियों के बीच तनहा हम
    हरे पेड़ों ,तितलियों और अबाबीलों में होते हैं
    waah ... bilkul sach

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