Friday 19 August 2011

मेरे दो गीत

चित्र -गूगल से साभार 
एक 
हाथों में हाथ लिए दूर तलक जाता है 
बारिश में  
छत होता 
तेज धूप ,छाता है |
हाथों में 
हाथ लिए 
दूर तलक जाता है |

मीत मेरा 
फूलों की खुशबू है 
दरपन है ,
जीवन की 
खुली हुई डायरी 
घर -आंगन है ,
जीत -हार 
दोनों में 
कौड़ियाँ बिछाता है |

जब -जब 
सम्बन्धों की 
डोर कहीं टूटे ,
साथ -साथ 
चले कोई 
और साथ छूटे ,
ऐसे में 
आँखों को 
स्वप्न से सजाता है |

कुट्टी हो 
तब मिलता 
झील के किनारे ,
गुस्से में 
पानी में 
कंकरिया मारे ,
फिर भी 
हम डूबें तो 
तैरकर बचाता है |
दो 
टूटी हुई छतों की पीड़ा 
अपनी इच्छा से 
से ये बादल 
सौ -सौ धार बरसते हैं |
टूटी हुई 
छतों की पीड़ा 
मौसम कहाँ समझते हैं |

सावन -भादों में 
भी रहते कितने 
पर्वत प्यासे ,
हरी -भरी 
घाटी को देखें 
परती -चौमासे ,
सबकी बात 
कहाँ सुनते ये 
काले मेघ घुड़कते हैं |

मन खजुराहो 
देह अजंता 
मौसम आग लगाये ,
देह तोड़ती 
पुरवा मन में 
सौ -सौ राग जगाये ,
इन्द्रधनुष में 
खोकर हम भी 
कितने गीत सिरजते हैं |

भरे ताल में 
कँवल -कँवल पे 
भौरों की मनमानी ,
मेहंदी रची 
हथेली लेकर 
खिली रात की रानी ,
यादों की 
जमीन पर खिलकर 
कितने फूल  महकते हैं |

चित्र -गूगल से साभार 

6 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति ....

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  2. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार गीत ! बेहतरीन प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  3. बेहतरीन रचनायें...

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  4. बेहतरीन पंक्तियाँ।

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  5. दोनों गीत मन को बहुत भाए।

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  6. अपनी इच्छा से
    से ये बादल
    सौ-सौ धार बरसते हैं ।
    टूटी हुई
    छतों की पीड़ा
    मौसम कहाँ समझते हैं ।

    दोनों गीत बहुत ही सुंदर।
    शब्दों और भावों का सुंदर समन्वय।

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