Friday 12 August 2011

मेरी दो ग़ज़लें

चित्र -गूगल से साभार 
एक
सूखे में कहीं ,बाढ़ में फसलें थी धान की 
फिर भी अमीन लाए हैं नोटिस लगान की 

पत्रा में लग्न खूब थे पंडित भी कम न थे 
फिर भी कुँवारी रह गयी बेटी किसान की 

बच्चों की दौड़ कम हुई आंगन की मेड़ से 
शहतीरें बाँट दी गयीं गिरते मकान की 

बेरोजगार बेटे की आवाज़ मर गयी 
सपने जला रही है, बहू खानदान की 
दो 
सितारा हो बुलंदी पर तो ये जागीर देता है 
ये गर्दिश में शहंशाहों को भी जंजीर देता है 

फिज़ा में रंग कितने हैं वो कैसे जान पायेगा 
खुद उसका आइना उसको गलत तस्वीर देता है 

जो सब्जी काटता है और किचन में काम आता है 
वही चाकू उँगलियों को भी अक्सर चीर देता है 

वो सबके सामने उजले कबूतर भी उड़ाता है 
मगर चुपके से बाजों को नुकीले तीर देता है 

हमारे मुल्क में पिंजरे में तोता राम रटता  है 
यही वो मुल्क है दुनिया को ग़ालिब ,मीर देता है 

यहाँ जंगल तितलियाँ ,फूल ,सूफी गीत गाते हैं 
मोहब्बत के फसानों को ये राँझा -हीर देता है 

जो अपने तन पे धुँधले रंग के कपड़े पहनता है 
जमाने को वही रंगों भरी तस्वीर देता है 
चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
[मेरी दोनों ही ग़ज़लें पुरानी और प्रकाशित हैं ]

11 comments:

  1. पत्रा में लग्न खूब थे पंडित भी कम न थे
    फिर भी कुँवारी रह गयी बेटी किसान की

    ....लाजवाब. दोनों ही गज़लें बहुत खुबसूरत..भाव मन को छू जाते हैं.

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  2. दोनों ही गज़लें लाजवाब.... बहुत बढ़िया

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  3. फिज़ा में रंग कितने हैं वो कैसे जान पायेगा
    खुद उसका आइना उसको गलत तस्वीर देता है
    Wah!
    Dono gazalen behtareen hain!

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  4. दोनों गज़लें अलग अलग रंग लिए ...बहुत अच्छी

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  5. विभिन्न भावों का समावेश है दोनों गजलों में दोनों गजलें सम्यक भावों का जीवंत उदाहरण हैं ..बहुत खूब

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  6. सूखे में कहीं ,बाढ़ में फसलें थी धान की
    फिर भी अमीन लाए हैं नोटिस लगान की

    अभी तो पहला ही शे’र पढ़ा है। और रुक दाद न दिया तो अदब के ख़िलाफ़ होगा।

    आपकी ग़ज़लों में बहुत ही गहब भाव होते हैं।

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  7. पत्रा में लग्न खूब थे पंडित भी कम न थे
    फिर भी कुँवारी रह गयी बेटी किसान की

    बच्चों की दौड़ कम हुई आंगन की मेड़ से
    शहतीरें बाँट दी गयीं गिरते मकान की

    बेरोजगार बेटे की आवाज़ मर गयी
    सपने जला रही है, बहू खानदान की

    ग़ज़ल में आपकी गहरी संवेदना, अनुभव और अंदाज़े बयां खुलकर प्रकट हुए हैं। इसकी शायरी सलीक़ेदार, प्रखर और प्रभावी है।

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  8. बेहतरीन पंक्तियाँ।

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  9. दोनों ही काव्य रचनाएं लाजवाब हैं...

    रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  10. पत्रा में लग्न खूब थे पंडित भी कम न थे
    फिर भी कुँवारी रह गयी बेटी किसान की ...

    बहुत गहरे जज्बातों को उतारा है इस गज़ल में आपने ... दोनों ही ग़ज़लें एक से बढ़ कर एक ...

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  11. जो अपने तन पे धुँधले रंग के कपड़े पहनता है
    जमाने को वही रंगों भरी तस्वीर देता है

    अन्नदाता के लिए हमारे पास ना वक्त है ना पैसा...इंटरटेनमेंट के लिए तो साला कुछ भी करेगा...

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