Saturday 14 May 2011

मेरे दो नवगीत

चित्र -गूगल से साभार 
एक 
चलो फिर गुलमोहरों के होंठ पर ये दिन सजाएं 

चलो फिर 
गुलमोहरों के होंठ पर 
ये दिन सजाएँ |
आधुनिक 
संदर्भ वाले 
कुछ पुराने गीत गाएं |

साँझ -सुबहों के 
गए माने 
दिन ढले दफ़्तर थकानों में ,
चहचहाते 
अब नहीं पंछी 
धुआं होते आसमानों में ,
हम उदासी 
ओढ़कर बैठे चलो 
मिलजुलकर टिफिन खाएं |

हम कहाँ अब 
धूल पोंछे आइनों सा 
दिख रहे हैं ,
आवरण ,आमुख 
किताबों में कहाँ 
सच लिख रहे हैं ,
चलो घर में 
कैद होकर 
पढ़ें मंटो की कथाएँ |

घर -गिरस्ती में 
हुईं धूमिल  
मौसमों के रंग वाली भाभियाँ ,
जब कभी हम 
बन्द तालों से हुए 
यही होतीं थी हमारी चाभियाँ ,
चलो फिर 
रूठी हुई इन 
भाभियों को हम मनाएं |

दो 
हम आंधी में उड़ते पत्ते 
सबके हाथ 
बराबर रोटी 
बांटो मेरे भाई |
इसी देश में 
कालाहांडी ,बस्तर 
और भिलाई |

कुछ के हिस्से 
आंच धूप की 
कुछ के सिर पर छाता  ,
दिल्ली और 
अमेठी से बस 
युवराजों का नाता ,
फूलों की 
घाटी हुजूर को 
हमको मिली तराई |

हम आंधी में 
उड़ते पत्ते 
शाखों पर कब लौटे ,
बच्चों के 
सिरहाने से 
गायब होते कजरौटे ,
दबे पाँव से 
बिल्ली भागी 
पीकर दूध ,मलाई |

ठूँठ पेड़ पर 
बैठे पंछी 
हाँफ रहे हैं भूखे ,
बिना फसल के 
खेतों में भी 
काबिज हुए बिजूखे ,
अँधेरे में 
ढूंढ रहे हम 
ढिबरी ,दियासलाई |
चित्र -गूगल से साभार 

25 comments:

  1. वाह!!! दोनों गीत लाजवाब|

    चलो घर में
    कैद होकर
    पढ़ें मंटो की कथाएँ



    कुछ के हिस्से
    आंच धूप की
    कुछ के हिस्से छाता ,
    दिल्ली और
    अमेठी से ही
    युवराजों का नाता ,
    फूलों की
    घाटी हुजूर की
    हमको मिली तराई |


    क्या बात है| जबरदस्त ...मज़ा आ गया| तुषार जी बहुत बहुत बधाई|

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  2. दोनों ही गीत बहुत सुन्दर ...


    अलग अलग विषयों को ले कर की गयी दोनों रचनाएँ अच्छी लगीं

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  3. हो रहीं धूमिल
    गिरस्ती में
    मौसमों के रंग वाली भाभियाँ ,
    जब कभी हम
    बन्द तालों से हुए
    यही होतीं थी हमारी चाभियाँ ,
    चलो फिर
    रूठी हुई इन
    भाभियों को हम मनाएं |..

    ...ये कोमल अहसास अब कहाँ हैं?

    दोनों ही रचनाएँ बहुत सुन्दर और प्रवाहमयी और यथार्थ के बहुत करीब..

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. इन नवगीतों की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं।

    • इस ऊबड़-खाबड़ गद्य कविता समय में आपने अपनी भाषा का माधुर्य और गीतात्मकता को बचाए रखा है।

    • इन नवगीतों में बाज़ारवाद और वैश्वीकरण के इस दौर में अधुनिकता और प्रगतिशीलता की नकल और चकाचौंध में किस तरह हमारी ज़िन्दगी घुट रही है प्रभावित हो रही है, उसे आपने दक्षता के साथ रेखांकित किया है। बिल्कुल नए सोच और नए सवालों के साथ समाज की मौज़ूदा जटिलता को उजागर कर आपने सोचने पर विवश कर दिया है।

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  6. इतने सुन्दर गीत अब भी लिखे जाते हैं यह देख प्रेरित हो रहा हूँ... नए संबर्भों को लेकर भी सुन्दर नवगीत रची गई है...

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  7. Beautiful navgeet. thanks.

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  8. हम आंधी में
    उड़ते पत्ते
    शाखों पर कब लौटे ,
    बच्चों के
    सिरहाने से
    गायब होते कजरौटे ,
    दबे पाँव से
    बिल्ली भागी
    पीकर दूध ,मलाई |

    दोनों ही नवगीत बहुत सुंदर....

    ReplyDelete
  9. हम आंधी में
    उड़ते पत्ते
    शाखों पर कब लौटे ,
    बच्चों के
    सिरहाने से
    गायब होते कजरौटे

    दोनों रचनाएँ अच्छी लगीं.....

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  10. दोनों नवगीत ज़बरदस्त हैं.
    हम उदासी
    ओढ़कर बैठे चलो
    मिलजुलकर टिफिन खाएं |
    उक्त पंक्तियों में बड़ा नयापन है.

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  11. बहुत ही सुंदर हैं दोनों नवगीत, कजरौटे जैसे शब्द चार चाँद लगा रहे हैं इसमें। बधाई स्वीकार करें।

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  12. दोनों ही रचनाएँ बहुत अच्छी लगी । आज के वक्त पर अच्छा कटाक्ष !

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  13. चलो घर में
    कैद होकर
    पढ़ें मंटो की कथाएँ |


    कुछ के हिस्से
    आंच धूप की
    कुछ के हिस्से छाता ,
    दिल्ली और
    अमेठी से ही
    युवराजों का नाता ,
    फूलों की
    घाटी हुजूर की
    हमको मिली तराई |


    अँधेरे में
    ढूंढ रहे हम
    ढिबरी ,दियासलाई |

    are waah waah waah
    zindaabad
    dil khush kar diya tushar ji

    jabardast

    ReplyDelete
  14. आप सभी शुभचिंतकों का दिल से आभार मेरे गीत आप को मेरे गीत पसंद आये इससे मेरे लेखन को सम्बल मिलेगा |धन्यवाद

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  15. दोनों रचनाएँ बहुत ही सुन्दर है! लाजवाब और उम्दा प्रस्तुती!

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  16. हम कहाँ अब
    धूल पोंछे आइनों सा
    दिख रहे हैं ,
    आवरण ,आमुख
    किताबों में कहाँ
    सच लिख रहे हैं ,
    चलो घर में
    कैद होकर
    पढ़ें मंटो की कथाएँ ...
    बहुत खूब ... दोनो ही लाजवाब और मंटो को पढ़ना तो कमाल ...

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  17. नयी सोच
    नए आयाम
    सामाजिक परिवेश और परिस्थितियों पर
    कड़ी नज़र ....
    दोनों गीत बहुत प्रभावशाली हैं
    उत्साहवर्द्धन के लिए धन्यवाद .

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  18. कुछ के हिस्से
    आंच धूप की
    कुछ के हिस्से छाता ,
    दिल्ली और
    अमेठी से ही
    युवराजों का नाता ,
    फूलों की
    घाटी हुजूर की
    हमको मिली तराई |
    lajavab

    Blogger वीना said...

    हम आंधी में
    उड़ते पत्ते
    शाखों पर कब लौटे ,
    बच्चों के
    सिरहाने से
    गायब होते कजरौटे ,
    दबे पाँव से
    बिल्ली भागी
    पीकर दूध ,मलाई |
    kya kahen nih shbad hain
    rachana

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  19. आपकी उत्साह भरी टिप्पणी और हौसला अफजाही के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

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  20. बच्चों ने ई- मेल किया है
    पहुंच गया होगा ,
    नाव चलानी है कागज की
    जल बरसाओ ना |
    नवीन प्रतीकों और रोचक बिम्बों का सुंदर प्रयोग।

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  21. भाई मनोज जी आपने भूल से योगेन्द्रजी के गीत पढ़कर मेरे गीत में कमेंट्स कर दिया है |यह कमेंट्स ऊपर की पोस्ट में होना चाहिए था |आभार

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  22. भाई जय कृष्ण राय तुषार जी को पढ़ना सदैव ही एक सुखद अनुभूति देता है| आप के नवगीतों के तो हम दीवाने हैं भाई|

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  23. सीधे शब्दों में अपनी बात कहने का कायल कर दिया..

    ReplyDelete

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