Friday 6 May 2011

गीत -कैसे लिख दें शाम सुहानी

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
कैसे लिख दें शाम सुहानी 
कैसे लिख दें 
शाम सुहानी 
इतना ऊँचा तापमान है |

प्यासी चिड़िया 
लौट रही है गुमसुम 
सूखे हुए ताल से ,
अँजुरी भर थे 
फूल उन्हें भी 
हवा उड़ा ले गई डाल से ,
बाहर भी 
आंधियां तेज हैं 
अंदर भी ठहरा उफान है |

इच्छाओं के 
पांव थक गये 
पथरीली राहों में चलते ,
हमको बस 
जुगनू दिखलाकर 
मौसम के हरकारे छलते ,
झोपड़ियों में 
स्याह रात है 
महलों में बस दीपदान है |

इत्र नहीं अब 
महज पसीने 
आँसू से भींगा रुमाल है ,
अम्मां ने 
खत लिखकर पूछा 
बेटा कैसा हालचाल है ,
परीकथाओं वाले 
सपनों में अब 
केवल बियाबान है |

बहुत दिन हुए 
चंदा देखे 
पानी की लहरों को गिनते ,
लुकाछिपी का 
खेल खेलते 
चरवाहों की वंशी सुनते ,
इन्द्रधनुष की 
आभा मद्धम 
धुँआ -धुँआ सा आसमान है |
चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
[यह गीत नये -पुराने साहित्यिक पत्रिका के पांचवें अंक में प्रकाशित है ]

7 comments:

  1. हमको बस
    जुगनू दिखलाकर
    मौसम के हरकारे छलते ,

    अम्मां ने खत लिखकर पूछा
    बेटा कैसा हालचाल है ,
    परीकथाओं वाले सपनों में
    अब केवल बियाबान है |


    शब्द-शब्द संवेदना भरा है...सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना.

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  2. इच्छाओं के
    पांव थक गये
    पथरीली राहों में चलते ,
    हमको बस
    जुगनू दिखलाकर
    मौसम के हरकारे छलते ,
    झोपड़ियों में
    स्याह रात है
    महलों में बस दीपदान है |

    बहुत बढ़िया ...संवेदनशील और हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ

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  3. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  4. बहुत ही सुंदर नवगीत है, एक एक पंक्ति साँचे में ढली हुई लगती है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें जय कृष्ण राय जी।

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  5. जुगनू दिखलाकर
    मौसम के हरकारे छलते

    बहुत सुन्दर लिखा है .जो बिम्ब उभर रहा है बहा ले जा रहा है.

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  6. बहुत ही सुंदर नवगीत है तुषार जी लेकिन पलाश पर भी एक गीत लिख ही दें... हम प्रतीक्षा में हैं...

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