Tuesday 3 May 2011

एक लम्बी प्रेम कविता -कवयित्री -ज्योतिर्मयी

कवयित्री -ज्योतिर्मयी 
सम्पर्क -0532-2422894
हिन्दी कविता में इलाहाबाद का अपना महत्वपूर्ण स्थान है |यह शहर प्रयोगों के लिए भी जाना जाता है |प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना से लेकर नई कविता आन्दोलन का श्रेय इलाहाबाद को जाता है |आज हम हिन्दी की बेहतरीन किन्तु कम चर्चित कवयित्री ज्योतिर्मयी जी के बारे में बताने जा रहे हैं |ज्योतिर्मयी प्रतिष्ठित हिन्दी की शोध पत्रिका हिन्दुस्तानी एकेडमी की सहायक सम्पादक और प्रशासनिक अधिकारी हैं |इनका जन्म 07 नवम्बर  1963 को लखनऊ में हुआ था |इनके पति हिमांशु रंजन पेशे से पत्रकार हैं | इन्होंने इलाहाबाद विश्व विद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल किया है |यदा -कदा रंग -मंच पर अभिनय के साथ स्क्रिप्ट लेखन भी करतीं हैं |इलाहाबाद दूरदर्शन के लिए सुविख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा पर एक वृत्त -चित्र भी इनके द्वारा  बनाया गया  है |ज्योतिर्मयी विषय को बड़े सलीके से उठाती हैं और इनकी कविताएं पाठकों से सीधे संवाद करती हैं |देश की प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में इनकी कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं |हिन्दुस्तानी एकेडमी से शीघ्र ही इनका काव्य संग्रह -हजारहाँ लकीरों के बीच प्रकाशित होने वाला है |हम अंतर्जाल के माध्यम से इस कवयित्री की एक लम्बी प्रेम कविता -दुष्यंत ने मुझसे एक वादा किया था आप तक पहुंचा रहे हैं ----
एक लम्बी प्रेम कविता -कवयित्री -ज्योतिर्मयी 

सदियों पहले दुष्यंत ने 
मुझसे एक वादा किया था 
अपने मन के आकाश में 
बिठा लेने का 
पर जाने कब उसकी दी हुई अंगूठी 
अंगुली से फिसलकर 
जल में समा गयी 
ताल -तलैया ,नदी सागर 
कुआँ और म्युनिसिपलिटी के 
बहते हुए नल में 
ढूंढ रही हूँ उस मछली को 
जिसके पेट में फँस गई है 
मेरे दुष्यंत की निशानी |
जनमी थी जिसके साथ 
एक अतृप्त सी आकांक्षा ....
तलाश रही हूँ 
अपने होने और न होने के 
बीच का सच 
मोहल्ले -टोले में ,पार्क के कोने में 
धर्म -दर्शन ,राजनीति ,समाज 
हर प्रकरण में 
बहसों किताबों चाय के प्यालों में 
सीता में ,सावित्री में अपाला ,गार्गी 
कालिदास की विद्योतमा या फिर 
तुलसीदास की रत्नावली में ....
अंगूठी न मिलने पर ........
आखिर कौन सा इतिहास रचूंगी मैं ...
क्योंकि 
आदमी से बड़ा होता है 
आदमी का सच 
खोने -पाने के अंतराल में 
एक पूरा का पूरा वजूद टिका है 
इतनी जरूरी है अंगूठी की तलाश ...
जहाँ से सारा कुछ जड़ हो जाता है 
शायद एक इतिहास की पुनरावृत्ति 
नहीं होगी 
लेकिन....... फिर भी 
चुपचाप मैं 
अंगूठी की तलाश में जुट जाती हूँ 
मछली के पेट को चीरने में 
और अंगूठी के मिलने में 
मेरे दुष्यंत का सच छुपा है 
और .....एक सच 
मेरी इन कांपती उँगलियों के 
कसी हुई मुट्ठी में बदल जाने का भी 
जिसमें पूरा का पूरा आकाश कैद है |
चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 

7 comments:

  1. ज्योतिर्मयी जी से परिचय और उनकी रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा... आपका यह प्रयास सरहनीय और प्रशंसनीय है....
    सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार

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  2. sahajata se kahi gayi ek visham prem -gatha ,jisake uttar ki talas pratikshit hai. mohak vichrmayi rachana .abhar

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  3. ज्योतिर्मयी जी से परिचय अच्छा लगा और उनकी रचना भी सुन्दर.

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  4. बहुत सुन्दर कविता ज्योति जी ... आपका अंतर्जाल पर यूँ आगमन सुखद लगा.संग्रह की प्रतीक्षा हमें भी है.

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  5. बहुत ही प्रभावी कविता ...

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  6. ज्योतिर्मयी जी को पढ़कर बहुत अच्छा लगा.सार्थक प्रस्तुति ..

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