Saturday 16 April 2011

गीत -इस सुनहरी धूप में

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
इस सुनहरी धूप में 

इस सुनहरी धूप में 
कुछ देर बैठा कीजिए  |
आज मेरे हाथ की 
ये चाय ताजा पीजिए |

भोर में है आपका रूटीन 
चिड़ियों की तरह ,
आप कब रुकतीं ,हमेशा 
नयी घड़ियों की तरह ,
फूल हँसते हैं सुबह 
कुछ आप भी हँस लीजिए |

दर्द पाँवों में उनींदी आँख 
पर उत्साह मन में ,
सुबह बच्चों के लिए 
तुम बैठती -उठती किचन में ,
कालबेल कहती बहनजी 
ढूध तो ले लीजिए |

मेज़ पर अखबार रखती 
बीनती चावल ,
फिर चढ़ाती देवता पर 
फूल अक्षत -जल ,
पल सुनहरे ,अलबमों के 
बीच मत रख दीजिए |
,
हैं कहाँ  तुमसे अलग 
एक्वेरियम की मछलियाँ ,
अलग हैं रंगीन पंखों में 
मगर ये तितलियाँ ,
इन्हीं से कुछ रंग ले 
रंगीन तो हो लीजिए |

तुम सजाती घर 
चलो तुमको सजाएँ ,
धुले हाथों पर 
हरी मेहँदी लगाएं ,
चाँद सा मुख ,माथ पर 
सूरज उगा तो लीजिए |
चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 

17 comments:

  1. इस सुनहरी धुप में किसी को आमंत्रित करना और उसके साथ समय बिताने का अपना मजा है ...आपने बहुत सुंदर तरीके से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया है .....आपका आभार

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  2. मेज़ पर अखबार रखती
    बीनती चावल ,
    फिर चढ़ाती देवता पर
    फूल अक्षत -जल ,
    पल सुनहरे ,अलबमों के
    बीच मत रख दीजिए |
    ,waah

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  3. इस सुनहरी धूप में
    कुछ देर बैठा कीजिए |
    आज मेरे हाथ की
    ये चाय ताजा पीजिए |

    वाह.....वाह.
    ताजा चाय का प्रयोग तो लाजवाब है !

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  4. वाह! क्या बात है सरल,सरस ,कुछ चुलबुलाती और प्यार का अहसास कराती आपकी अनुपम प्रस्तुति का.आभार

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  5. • ताज़ा बिम्बों-प्रतीकों-संकेतों से युक्त आपकी कविता की भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम भर नहीं, जीवन की तहों में झांकने वाली आंख है। इस कविता का काव्य-शिल्प हमें सहज ही आपकी भाव-भूमि के साथ जोड़ लेता है। चित्रात्मक वर्णन कई जगह बांधता है।

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  6. बहुत सुंदर, बधाई स्वीकार कीजिए

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  7. हैं कहाँ तुमसे अलग
    एक्वेरियम की मछलियाँ
    अलग हैं रंगीन पंखों में
    मगर ये तितलियाँ
    इन्हीं से कुछ रंग ले
    रंगीन तो हो लीजिए ।

    गीत का लालित्य मोहक है। मौलिक भावभूमि पर उकेरा गया यह गीत किसी नयनाभिराम चित्र से कम नहीं।

    इस अनुपम रचना के लिए बधाई, तुषार जी।

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  8. is garmi ki kadak dhoop ke bavjood apke blog per sunheri dhoop paker sukoon ka anubhav prapt hua...... Dhanyawad....

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  9. तुम सजाती घर
    चलो तुमको सजाएँ ,
    धुले हाथों पर
    हरी मेहँदी लगाएं ,
    चाँद सा मुख ,माथ पर
    सूरज उगा तो लीजिए |
    Kitna pyara-sa khayal hai!

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  10. हैं कहाँ तुमसे अलग
    एक्वेरियम की मछलियाँ ,
    अलग हैं रंगीन पंखों में
    मगर ये तितलियाँ ,
    इन्हीं से कुछ रंग ले
    रंगीन तो हो लीजिए |

    शब्दों और भावों का बेजोड संगम...कविता का प्रवाह अद्वितीय..आपकी रचना ने निशब्द कर दिया..बधाई

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  11. तुम सजाती घर
    चलो तुमको सजाएँ ,
    धुले हाथों पर
    हरी मेहँदी लगाएं ,
    चाँद सा मुख ,माथ पर
    सूरज उगा तो लीजिए |

    वाह ... बहुत खूबसूरत पंक्तियां ।

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  12. man ko gudgudati panktiyaan..awesome!

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  13. आपका रचना संसार वृहद् एवम प्रभावी है सारी रचना उत्कृष्ट है . कविता का प्रवाह अद्वितीय है. आपकी कविता का साँचा मन को बहुत रुचा. और इस साँचे में ढाल दिये भाव को.बहुत खूबसूरत

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  14. आप सभी ने इस कविता /गीत को पसंद किया आभार

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