Tuesday 12 April 2011

मेरी दो गज़लें

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
एक 
छत बचा लेता है मेरी ,वही पाया  बनकर 
मुझको हर मोड़  पे मिलता है फरिश्ता बनकर

तेरी यादें कभी तनहा नहीं होने देतीं 
साथ चलती हैं मेरे ,धूप में साया बनकर 

तंगहाली में रही जब भी व्यवस्था घर की 
मेरी माँ उसको छिपा लेती है परदा बनकर 

आज के दौर के बच्चे भी कन्हैया होंगे 
आप पालें तो उन्हें नंद यशोदा बनकर

घर के बच्चों से नहीं मिलिये  किताबों की तरह 
उनके जज्बात को पढ़िये तो खिलौना बनकर 
दो 
वही उड़ान का का असली हुनर दिखाते हैं 
तिलस्म तोड़ के आंधी का,  घर जो आते हैं 

कभी प्रयाग के संगम को देखिये आकर 
यहाँ परिंदे भी डुबकी लगाने आते हैं 

ये बात सच है कि  दरिया से दोस्ती है मगर 
मल्लाह डूबने वालों को ही बचाते हैं 

लिबास देखके मत ढूंढिए फकीरों को 
कुछ जालसाज भी चन्दन तिलक लगाते हैं 

कब इनको खौफ़ रहा जाल और बहेलियों का 
परिंदे बैठ के पेड़ों पे चहचहाते  हैं 

हम अपने घर को भी दफ़्तर बनाये बैठे हैं 
परीकथाओं को बच्चों को कब सुनाते हैं 


किसी गरीब के घर को मचान मत कहना 
कबीले पेड़ की शाखों पे घर बनाते हैं 
चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 

15 comments:

  1. तेरी यादें कभी तनहा नहीं होने देतीं
    साथ चलती हैं मेरे ,धूप में साया बनकर

    वाह क्या बात है. . आपको बधाई

    ReplyDelete
  2. आज के दौर के बच्चे भी कन्हैया होंगे
    आप पालें तो उन्हें नंद यशोदा बनकर
    Kya gazab kee rachnayen hain dono! Ekse badhke ek!

    ReplyDelete
  3. Ramnavmee kee anek shubhkamnayen!

    ReplyDelete
  4. दोनों गज़लें बहुत अच्छी है एक से बढ़ कर एक| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  5. आज के दौर के बच्चे भी कन्हैया होंगे
    आप पालें तो उन्हें नंद यशोदा बनकर

    घर के बच्चों से नहीं मिलिये किताबों की तरह
    उनके जज्बात को पढ़िये तो खिलौना बनकर

    Bahut hi badhiya....Man me utar gayi panktiyan....

    ReplyDelete
  6. वाह तुषार भाई क्या खूब प्रस्तुतियाँ दी हैं आपने| बहुत ही खूबसूरत ख़यालों से सजी मनोहारी अभिव्यक्तियाँ| ये पंक्तियाँ खास कर दिल के ज्यादा करीब लगीं :-

    आज के दौर के बच्चे भी..............
    घर के बच्चों से नहीं मिलिये...........
    कभी प्रयाग के संगम को..............
    हम अपने घर को भी दफ़्तर..........
    किसी गरीब के घर को..........

    दिल खुश हो गया तुषार भाई| बहुत बहुत बधाई|

    ReplyDelete
  7. Bahut badhiya aur saamyik gazlein,Tushar ji.Accha laga padh kar.

    ReplyDelete
  8. यूँ तो पूरी ग़ज़ल बेहतरीन है पर निम्न शेर:-

    आज के दौर के बच्चे भी कन्हैया होंगे
    आप पालें तो उन्हें नंद यशोदा बनकर.

    लाजवाब लाजवाब लाजवाब.

    ReplyDelete
  9. किसी गरीब के घर को मचान मत कहना
    कबीले पेड़ की शाखों पे घर बनाते हैं
    waah bahut hi badhiyaa

    ReplyDelete
  10. कवियों की रचनाओं का अनमोल संग्रह का संपादन मैं पुनः कर रही हूँ , सबकी तरफ से एक निश्चित धनराशि का योगदान
    है ... क्या शामिल होना चाहेंगे ?

    1) इस पुस्तक में 25-30 कवियों/कवयित्रियों की प्रतिनिधि कविताओं को संकलित की जायेंगी।
    2) इस पुस्तक का संपादन रश्मि प्रभा करेंगी।
    3) एक कवि को लगभग 6 पृष्ठ दिया जायेगा
    4) सहयोग राशि के बदले में पुस्तक की 25 प्रतियाँ दी जायेंगी।
    5) सभी पुस्तकें हार्ड-बाइंड (सजिल्द) होंगी और उनमें विशेष तरह कागज इस्तेमाल किया जायेगा।
    6) यदि कोई कवि 6 से अधिक पृष्ठ की माँग करता है या उसकी कविताएँ 6 से अधिक पृष्ठ घेरती हैं तो उसे प्रति पृष्ठ रु 500 के हिसाब
    से अतिरिक्त सहयोग देना होगा। उदाहरण के लिए यदि किसी कवि को 10 पृष्ठ चाहिए तो 4 अतिरिक्त पृष्ठों के लिए रु 500 X 4= रु 2000
    अतिरिक्त देना होगा
    7) यदि कोई कवि 25 से अधिक प्रतियाँ चाहता है तो उसे अभी ही कुल प्रतियों की संख्या बतानी होगी। अतिरिक्त प्रतियाँ उसे
    अधिकतम मूल्य (जो कि रु 300 होगा) पर 50 प्रतिशत छूट (यानी रु 150 प्रति पुस्तक) पर दी जायेंगी।
    8) यदि किसी कवि ने अतिरिक्त कॉपियों का ऑर्डर पहले से बुक नहीं किया है तो बाद में अतिरिक्त कॉपियों की आपूर्ति की गारंटी हिन्द-युग्म
    या रश्मि प्रभा की नहीं होगी। यदि प्रतियाँ उपलब्ध होंगी तो 33 प्रतिशत छूट के बाद यानी रु 200 में दी जायेंगी।
    9) कविता-संग्रह की कविताओं पर संबंधित कवियों का कॉपीराइट होगा।
    10) सभी कवियों और संपादक को 20 प्रतिशत की रॉयल्टी दी जायेगी (बराबर-बराबर)

    ReplyDelete
  11. आदरणीय रश्मि जी आपका आभार लेकिन अब मैं खुद अपने संकलन की तैयारी में हूँ |इसलिए असहमत हूँ |इसे अन्यथा न लीजियेगा |

    ReplyDelete
  12. तंगहाली में रही जब भी व्यवस्था घर की
    मेरी माँ उसको छिपा लेती है परदा बनकर

    Achchha sher, achchhee gazalein

    ReplyDelete
  13. आप सभी ने गज़लों को पसंद किया आप सभी का आभार |

    ReplyDelete
  14. घर के बच्चों से नहीं मिलिये किताबों की तरह
    उनके जज्बात को पढ़िये तो खिलौना बनकर

    wah

    amit

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -ग़ज़ल ऐसी हो

  चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल - कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ  ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ  ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत ...