Thursday 31 March 2011

मेरे दो गीत

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
एक 
कब लौटोगी कथा सुनाने 

कब लौटोगी 
कथा सुनाने 
ओ सिंदूरी शाम |

रीत गयी है 
गन्ध संदली 
शोर हवाओं में ,
चुटकी भर 
चांदनी नहीं है 
रात दिशाओं में ,

टूट रहे 
आदमकद शीशे 
चीख और कोहराम |

माथे बिंदिया 
पांव महावर 
उबटन अंग लगाने ,
जूडे चम्पक 
फूल गूंथने 
क्वांरी मांग सजाने ,

हाथों में 
जादुई छड़ी ले 
आना मेरे धाम |

बंद हुई 
खिड़कियाँ ,झरोखे 
तुम्हें खोलना है ,
बिजली के 
तारों पर 
नंगे पांव डोलना है ,

प्यासे होठों पर 
लिखना है 
बौछारों का नाम |

दो 
सूरज कल भोर में जगाना 
नींद नहीं 
टूटे तो 
देह गुदगुदाना |
सूरज 
कल भोर में 
जगाना |

फूलों में 
रंग भरे 
खुशबू हो देह धरे ,
मौसम के 
होठों से 
रोज सगुन गीत झरे ,

फिर आना 
झील -ताल 
बांसुरी बजाना |

हल्दी की 
गाँठ बंधे 
रंग हों जवानी के ,
इन सूखे 
खेतों में 
मेघ घिरें पानी के ,

धरती की 
कोख हरी 
दूब को उगाना |

लुका -छिपी 
खेलेंगे 
जीतेंगे -हारेंगे 
मुंदरी के 
शीशे में 
हम तुम्हें निहारेंगे ,

मन की 
दीवारों पर
अल्पना सजाना |

चित्र -गूगल से साभार 


Monday 14 March 2011

होली के रंग -मेरे गीतों के संग

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
एक - होली में आना जी आना 

होली में 
आना जी  आना 
चाहे जो रंग लिए आना |
भींगेगी देह 
मगर याद रहे 
मन को भी रंग से सजाना |


वर्षों से 
बर्फ जमी प्रीति को 
मद्धम सी आंच पर उबालना ,
जाने क्या
चुभता है आँखों में 
आना तो फूंककर निकालना ,
मैं नाचूँगी 
राधा बनकर 
तू कान्हा बांसुरी बजाना |


आग लगी 
जंगल में या 
पलाश दहके हैं ,
मेरे भी 
आंगन में 
कुछ गुलाब महके हैं ,
कब तक 
हम रखेंगे बांधकर 
खुशबू का है कहाँ ठिकाना |


लाल हरे 
पीले रंगों भींगी
चूनर को धूप में सुखायेंगे ,
तुम मन के 
पंख खोल उड़ना 
हम मन के पंख को छुपायेंगे ,
मन की हर 
बंधी गाँठ खोलना 
उस दिन तो दरपन हो जाना |


हारेंगे हम ही 
तुम जीतना 
टॉस मगर जोर से उछालना ,
ओ मांझी 
धार बहुत तेज है 
मुझे और नाव को सम्हालना ,
नाव से 
उतरना जब घाट पर 
हाथ मेरी ओर भी बढ़ाना


दो -
आम  कुतरते हुए सुए से 


आम कुतरते हुए सुए से 
मैना कहे मुंडेर की |
अबकी होली में ले आना 
भुजिया बीकानेर की |


गोकुल ,वृन्दावन की हो 
या होली हो बरसाने की ,
परदेशी की वही पुरानी 
आदत है तरसाने की ,
उसकी आंखों को भाती है 
कठपुतली आमेर की |


इस होली में हरे पेड़ की 
शाख न कोई टूटे ,
मिलें गले से गले ,पकड़कर 
हाथ न कोई छूटे ,
हर घर -आंगन महके खुशबू 
गुड़हल और कनेर की |


चौपालों पर ढोल मजीरे 
सुर गूंजे करताल के ,
रूमालों से छूट न पायें 
रंग गुलाबी गाल के ,
फगुआ गाएं या फिर बांचेंगे 
कविता शमशेर की |
चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार
[मेरा दूसरा गीत अमर उजाला के २० मार्च २०११ के साप्ताहिक परिशिष्ट जिंदगी लाइव में प्रकाशित हो चुका है |इस गीत को प्रकाशित करने के लिए जाने माने कवि /उपन्यासकार एवं सम्पादक साहित्य अरुण आदित्य जी  का विशेष आभार]
[दूसरा  गीत   नरेंद्र व्यास जी के आग्रह पर  लिखना पड़ा, इसलिए यह गीत उन्हीं को समर्पित  कर रहा हूँ ]

Sunday 13 March 2011

गज़ल -होली मनाइये

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
होली मनाइये 


यह वर्ष बेमिसाल है होली मनाइये 
हर शख्स तंग हाल है होली मनाइये

मनमोहनी हंसी ने रुलाकर के रख दिया 
सौ रूपये में दाल है होली मनाइये 


कुर्सी महल कलमाड़ी के हिस्से में दोस्तों 
अपने लिए पुआल है होली मनाइये 


रंगों में है  घोटाला मिलावट अबीर में 
महँगा भले गुलाल है होली मनाइये 


फागुन भी कटघरे में बसंती भी जेल में 
मौसम भी ये दलाल है होली मनाइये 


राहुल जी राज छोड़के घरवाली लाइए 
ये उम्र का सवाल है होली मनाइये 


भारी है पेट गडकरी गुझिया न खाइए 
पार्टी का खस्ता हाल है होली मनाइये

अबकी कैटरीना कैफ भी  होली के मूड में 
सादा बस एक गाल है होली मनाइये 


हाथों में ले अबीर अमर सिंह न बैठिये 
घर में भले बवाल है होली मनाइये

बहुमत में लौटकर के बहिन जी फिर आइये 
हाथी का सब कमाल है होली मनाइये 


राधा शहर में बस गयी कान्हा विदेश में 
बरसाने में अकाल है होली मनाइये


सत्ता का चेहरा हो गया पीला तो क्या हुआ 
जनता का चेहरा लाल है होली मनाइये 


पाले में नंगा जिस्म ले मरता रहे किसान 
मस्ती में लेखपाल है होली मनाइये 


जंगल का हाल उड़ते परिंदों से पूछिए 
गिरवीं हरेक डाल है होली मनाइये 


पी करके भाँग  सो रही संसद विधायिका 
अपना किसे खयाल है होली मनाइये 
चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
[बुरा न मानो   होली है|यह मेरी पुरानी गज़ल है ,इसे संशोधन के द्वारा समसामयिक बनाया गया है  ]

Saturday 5 March 2011

मेरी दो ग़ज़लें


चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 


एक 

सलीका बांस को बजने का जीवन भर नहीं होता 
बिना होठों के वंशी का भी मीठा स्वर नहीं होता 

किचन में माँ बहुत रोती है पकवानों की खुशबू में 
किसी त्यौहार पर बेटा जब उसका घर नहीं होता 

ये सावन गर नहीं लिखता हंसी मौसम के अफसाने 
कोई भी रंग मेंहदी का हथेली पर नहीं होता 

किसी बच्चे से उसकी माँ को वो क्यों छीन लेता है 
अगर वो देवता होता तो फिर पत्थर नहीं होता 

परिंदे वो ही जा पाते हैं ऊँचे आसमानों तक 
जिन्हें सूरज से जलने का तनिक भी डर नहीं होता 

दो 

गर ये रहबर ही निठारी के हलाकू देंगे 
हम भी बच्चों को खिलौना नहीं चाकू देंगे 

धूप दे या घना कोहरा दे ये मौसम जाने 
हम तो एक फूल हैं हर हाल में खुशबू देंगे 

आप गुलमोहरों का साथ निभाते रहिये 
इस इमारत को बुलंदी तो ये साखू देंगे 

आप आलिम हैं तो बच्चों को पढ़ाते रहिये 
अब सियासत को हरेक मशवरा उल्लू देंगे 

घर हो मिट्टी का या पत्थर का वहीं पर चलिए 
तेज आंधी में सहारा कहाँ तम्बू देंगे 
चित्र -गूगल से साभार 
[मेरी प्रथम गज़ल आजकल और आधारशिला के गज़ल विशेषांक में प्रकाशित हो चुकी है ]


Friday 4 March 2011

एक प्रेम गीत -फूलों से बात करें

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
एक प्रेम गीत -फूलों से बात करें

चलो कहीं 
झील -ताल 
कूलों से बात करें |
हाथ में 
किताब लिए 
फूलों से बात करें |

तुम्हें देख 
स्वप्न उगेंगे 
पठार, टीलों में ,
बातों की 
गंध महक 
जायेगी मीलों में ,

आओ फिर 
टूटते 
उसूलों से बात करें |

जी भर 
बतियायेंगे 
आज नहीं रोकना ,
होंठ पर 
उँगलियाँ धर 
मुझे नहीं टोकना ,

आओ इस 
उपवन के 
झूलों से बात करें |

थक कर भी 
हाथों में हाथ 
लिए चलना ,
छोर  से 
रूमालों के  
आँख भले मलना ,

पावों में 
लिपटी इन 
धूलों से बात करें |

भौरों को
फूलों के 
चटख रंग भायेंगे ,
ये उदास 
पंछी भी 
तुम्हें देख गायेंगे |

छूट गये 
रस्तों 
स्कूलों से  बात करें |
चित्र -गूगल से साभार 


Wednesday 2 March 2011

आस्था के स्वर -संदर्भ -महाशिवरात्रि

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार
महाशिवरात्रि पर विशेष रचना 

भक्ति भाव से प्रेम भाव से 
हम करते गुणगान    |
तुम्हारा हे शकंर भगवान 
तुम्हारी जय शंकर भगवान |

तुम यह जग माया उपजाये 
तेरी महिमा सुर नर गाये ,
तू भक्तों का ताप मिटाये ,
नीलकंठ विष पी कहलाये 

तुम ही हो असीम भव सागर 
तुम नाविक जलयान  |

तेरी संगिनी सती भवानी 
तेरे वाहन नंदी ज्ञानी ,
तेरे डमरू की डिम डिम से 
निकलीं उमा ,रमा ,ब्रह्मानी ,

तू ही जग का अंधकार प्रभु 
तू ही उज्जवल ज्ञान |

तीन लोक में काशी न्यारी 
तुमको प्रिय भोले भंडारी ,
भूत प्रेत बेताल के संगी ,
हें भोले बाबा अड् भंगी ,

तेरी महिमा जान न पाये 
चारो वेद पुराण  |

तुम्ही प्रलय हो तुम्ही पवन हो 
तुम यह धरती नीलगगन हो ,
जड़ चेतन के भाग्य विधाता 
तुम्ही काल के असली ज्ञाता ,

तुम्ही पंचमुख महाकाल हो 
तुम्ही सूर्य हनुमान |


बनारस -चित्र गूगल से साभार 

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...